लोभ और प्रीति (निबन्ध) : आचार्य रामचन्द्र शुक्ल

लोभ और प्रीति (निबन्ध) : आचार्य रामचन्द्र शुक्ल Lobh Aur Preeti (Nibandh) : Acharya Ramchandra Shukla जिस प्रकार सुख या आनंद देनेवाली वस्तु के संबंध में मन की ऐसी स्थिति को जिसमें उस वस्तु के अभाव की भावना होते ही प्राप्ति, सान्निध्य या रक्षा की प्रबल इच्छा जग पड़े, लोभ कहते हैं। दूसरे की वस्तु … Read more

लज्जा और ग्लानि (निबन्ध) : आचार्य रामचन्द्र शुक्ल

लज्जा और ग्लानि (निबन्ध) : आचार्य रामचन्द्र शुक्ल Lajja Aur Glani (Nibandh) : Acharya Ramchandra Shukla हम जिन लोगों के बीच रहते हैं अपने विषय में उनकी धारणा का जितना ही अधिक ध्यान रखते हैं उतना ही अधिक प्रतिबंध अपने आचरण पर रखते हैं। जो हमारी बुराई, मूर्खता या तुच्छता के प्रमाण पा चुके रहते … Read more

करुणा (निबन्ध) : आचार्य रामचन्द्र शुक्ल

करुणा (निबन्ध) : आचार्य रामचन्द्र शुक्ल Karuna (Nibandh) : Acharya Ramchandra Shukla जब बच्चे को संबंधज्ञान कुछ कुछ होने लगता है तभी दु:ख के उस भेद की नींव पड़ जाती है जिसे करुणा कहते हैं। बच्चा पहले परखता है कि जैसे हम हैं वैसे ही ये और प्राणी भी हैं और बिना किसी विवेचना क्रम … Read more

श्रद्धा-भक्ति (निबन्ध) : आचार्य रामचन्द्र शुक्ल

श्रद्धा-भक्ति (निबन्ध) : आचार्य रामचन्द्र शुक्ल Shraddha-Bhakti (Nibandh) : Acharya Ramchandra Shukla किसी मनुष्य में जन-साधारण से विशेष गुण वा शक्ति का विकास देख उसके सम्बन्ध में जो एक स्थायी आनन्द-पद्धति हृदय में स्थापित हो जाती है उसे श्रद्धा कहते हैं। श्रद्धा महत्त्व की आनन्दपूर्ण स्वीकृति के साथ-साथ पूज्य-बुद्धि का सञ्चार है। यदि हमें निश्चय … Read more

उत्साह (निबन्ध) : आचार्य रामचन्द्र शुक्ल

उत्साह (निबन्ध) : आचार्य रामचन्द्र शुक्ल Utsah (Nibandh) : Acharya Ramchandra Shukla दुःख के वर्ग में जो स्थान भय का है, आनंद वर्ग में वही स्थान उत्साह का है। भय में हम प्रस्तुत कठिन स्थिति के निश्चय से विशेष रूप में दुखी और कभी-कभी स्थिति से अपने को दूर रखने के लिए प्रयत्नवान् भी होते … Read more

भाव या मनोविकार (निबन्ध) : आचार्य रामचन्द्र शुक्ल

भाव या मनोविकार : आचार्य रामचन्द्र शुक्ल (निबन्ध) Bhav Ya Manovikar : Acharya Ramchandra Shukla (Nibandh) अनुभूति के द्वंद्व ही से प्राणी के जीवन का आरंभ होता है। उच्च प्राणी मनुष्य भी केवल एक जोड़ी अनुभूति लेकर इस संसार में आता है। बच्चे के छोटे से हृदय में पहले सुख और दु:ख की सामान्य अनुभूति … Read more

रस भरी वाणी गुरु नानक की : ठाकुर दलीप सिंह

रस भरी वाणी गुरु नानक की : ठाकुर दलीप सिंह Ras Bhari Vani Guru Nanak Ki : Thakur Dalip Singh (सतगुरु नानक वाणी में आये काव्य रसों की व्याख्या) रस भरे वाक्यों से ही कविता बनती है। इस लिए रसपूर्ण कविता कई प्रकार के रसों से युक्त होती है। विभिन्न भारतीय भाषाओं में ( उर्दू … Read more

नानक सायर एव कहित है : ठाकुर दलीप सिंह

नानक सायर एव कहित है : ठाकुर दलीप सिंह Nanak Sayar Ev Kehat Hai : Thakur Dalip Singh (सतगुरु नानक वाणी में वर्णित छंदों की व्याख्या) सतगुरु नानक देव जी ने अपने आप को शायर यानि कवि भी माना है। कवि रूप में गुरु जी ने कविता रची है। जिस में से ९४७ श्लोक / … Read more

साहित्य का उद्देश्य : मुंशी प्रेमचंद

साहित्य का उद्देश्य : मुंशी प्रेमचंद Sahitya Ka Uddeshya : Munshi Premchand (1936 में प्रगतिशील लेखक संघ के प्रथम अधिवेशन लखनऊ में प्रेमचंद द्वारा दिया गया अध्यक्षीय भाषण।) सज्जनो, यह सम्मेलन हमारे साहित्य के इतिहास में स्मरणीय घटना है। हमारे सम्मेलनों और अंजुमनों में अब तक आम तौर पर भाषा और उसके प्रचार पर ही … Read more

जीवन में साहित्य का स्थान : मुंशी प्रेमचंद

जीवन में साहित्य का स्थान : मुंशी प्रेमचंद Jeevan Mein Sahitya Ka Sthan : Munshi Premchand साहित्य का आधार जीवन है। इसी नींव पर साहित्य की दीवार खड़ी होती है। उसकी अटरियाँ, मीनार और गुम्बद बनते हैं लेकिन बुनियाद मिट्टी के नीचे दबी पड़ी है। उसे देखने को भी जी नहीं चाहेगा। जीवन परमात्मा की … Read more