सुनता है तू सबकी क्यों अब तो विचारे है
मेरी भी सुनेगा तू ये कहते सारे हैं
मुद्दत से जीवन में छाया क्यों अँधेरा है
मुझको तो लगता है जीवन का फेरा है
न दर के सिवा तेरे कहीं हाथ पसारे हैं
सुनता है तू सबकी क्यों अब तो विचारे है
माना की हाथों में किस्मत की नहीं रेखा
जो बीत रही मुझपे क्या तूने नहीं देखा
हर बिगड़ी किस्मत को तू हो तो सँवारे है
सुनता है तू सबकी क्यों अब तो विचारे है
पापी भी कपटी भी यहाँ मौज में रहते हैं
तेरे भक्त कई बाबा ग़म पल पल सहते हैं
न समझ सके जालान जो खेल तुम्हारे हैं
सुनता है तू सबकी क्यों अब तो विचारे है
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