(व्यंग्य) किस भारत भाग्य विधाता को पुकारें – हरिशंकर परसाई

(व्यंग्य) किस भारत भाग्य विधाता को पुकारें – हरिशंकर परसाई

(व्यंग्य) किस भारत भाग्य विधाता को पुकारें – हरिशंकर परसाई मेरे एक मुलाकाती हैं। वे कान्यकुब्ज हैं। एक दिन वे चिंता से बोले – अब हम कान्यकुब्जों का क्या होगा? मैंने कहा – आप लोगों को क्या डर है? आप लोग जगह-जगह पर नौकरी कर रहे हैं। राजनीति में ऊँचे पदों पर हैं। द्वारिका प्रसाद … Read more

(व्यंग्य) कहावतों का चक्कर – हरिशंकर परसाई

(व्यंग्य)  कहावतों का चक्कर – हरिशंकर परसाई

(व्यंग्य) कहावतों का चक्कर – हरिशंकर परसाई जब मैं हाईस्कूल में पढता था, तब हमारे अंग्रेजी के शिक्षक को कहावतें और सुभाषित रटवाने की बड़ी धुन थी । सैकड़ों अंग्रेजी कहावतें उन्होंने हमे रटवाई और उनका विश्वास था की यदि हमने नीति वाक्य रट लिए, तो हमारी जिंदगी जरूर सुधर जायेगी । हमारी जिंदगी सुधरी … Read more

(व्यंग्य) कहत कबीर- हरिशंकर परसाई

(व्यंग्य)  कहत कबीर- हरिशंकर परसाई

(व्यंग्य) कहत कबीर- हरिशंकर परसाई संयोग कुछ ऐसा घटा। सन् 1961 में ‘नई दुनिया’ जबलपुर के (तत्कालीन ) संपादक और मेरे (दीर्घकालीन) मित्र (आगे की कौन जानता है ?) मायाराम सुरजन ने हम दोनों के मित्र श्रीबाल पांडे के साथ तय किया कि मैं उनके पत्र में प्रति सप्ताह व्यंग्य-स्तंभ लिखूँ । नाम का सवाल … Read more

(व्यंग्य पत्र) कवि कहानी कब लिखता है? – हरिशंकर परसाई

(व्यंग्य पत्र) कवि कहानी कब लिखता है? – हरिशंकर परसाई

(व्यंग्य पत्र) कवि कहानी कब लिखता है? – हरिशंकर परसाई आजकल नित्य ही कहीं न कहीं कहानी पर बहस होती है और बड़े मजे के वक्तव्य सुनने को मिलते हैं। एक दिन मैं एक क्लासिकल होटल में चाय पी रहा था। क्लासिकल होटल वह है जिसमे जलेबी दोने में दी जाती है और पानी ऊपर … Read more

(निबंध) आँगन में बैंगन- हरिशंकर परसाई

(निबंध) आँगन में बैंगन-  हरिशंकर परसाई

(निबंध) आँगन में बैंगन- हरिशंकर परसाई   मेरे दोस्‍त के आँगन में इस साल बैंगन फल आए हैं। पिछले कई सालों से सपाट पड़े आँगन में जब बैंगन का फल उठा तो ऐसी खुशी हुई जैसे बाँझ को ढलती उम्र में बच्‍चा हो गया हो। सारे परिवार की चेतना पर इन दिनों बैंगन सवार है। … Read more

(व्यंग्य) इति श्री रिसर्चाय – हरिशंकर परसाई

(व्यंग्य) इति श्री रिसर्चाय – हरिशंकर परसाई

(व्यंग्य) इति श्री रिसर्चाय – हरिशंकर परसाई सन् 1950 ईसवी बाबू गोपालचंद्र बड़े नेता थे, क्योंकि उन्होंने लोगों को समझाया था और लोग समझ भी गए थे कि अगर वे स्वतंत्रता-संग्राम में दो बार जेल – ‘ए क्लास’ में – न जाते, तो भारत आजाद होता ही नहीं। तारीख 3 दिसंबर 1950 की रात को … Read more

(व्यंग्य) इंस्पेक्टर मातादीन चांद पर – हरिशंकर परसाई

(व्यंग्य) इंस्पेक्टर मातादीन चांद पर – हरिशंकर परसाई

(व्यंग्य) इंस्पेक्टर मातादीन चांद पर – हरिशंकर परसाई वैज्ञानिक कहते हैं, चाँद पर जीवन नहीं है। सीनियर पुलिस इंस्पेक्टर मातादीन (डिपार्टमेंट में एम. डी. साब) कहते हैं- वैज्ञानिक झूठ बोलते हैं, वहाँ हमारे जैसे ही मनुष्य की आबादी है। विज्ञान ने हमेशा इन्स्पेक्टर मातादीन से मात खाई है। फिंगर प्रिंट विशेषज्ञ कहता रहता है- छुरे … Read more

(व्यंग्य) इस तरह गुजरा जन्मदिन- हरिशंकर परसाई

(व्यंग्य) इस तरह गुजरा जन्मदिन- हरिशंकर परसाई

(व्यंग्य) इस तरह गुजरा जन्मदिन- हरिशंकर परसाई तीस साल पहले बाईस अगस्त को एक सज्जन सुबह मेरे घर आये। उनके हाथ में गुलदस्ता था। उन्होंने स्नेह और आदर से मुझे गुलदस्ता दिया। मैं अकचका गया। मैंने पूछा-यह क्यों ? उन्होंने कहा-आज आपका जन्मदिन है न। मुझे याद आया मैं बाईस अगस्त को पैदा हुआ था। … Read more

(व्यंग्य) ईश्वर की सरकार- हरिशंकर परसाई

(व्यंग्य) ईश्वर की सरकार- हरिशंकर परसाई

(व्यंग्य) ईश्वर की सरकार- हरिशंकर परसाई हमारे देश की सरकार ने देश की प्रतिष्ठा पूरे विश्व में बढ़ाई है। प्रधानमंत्री ने तो किया ही है, हर मंत्री ने भी इसमें योगदान दिया है। पुलिस भी बदल चुकी है, लाठीचार्ज की घटनाओं में कमी आई है, पर गोलीचालन बढ़ गया है। जनता के पैसे से गोलियां … Read more

(व्यंग्य) उखड़े खंभे – हरिशंकर परसाई

(व्यंग्य) उखड़े खंभे – हरिशंकर परसाई

(व्यंग्य) उखड़े खंभे – हरिशंकर परसाई कुछ साथियों के हवाले से पता चला कि कुछ साइटें बैन हो गयी हैं। पता नहीं यह कितना सच है लेकिन लोगों ने सरकार को कोसना शुरू कर दिया। अरे भाई,सरकार तो जो देश हित में ठीक लगेगा वही करेगी न! पता नहीं मेरी इस बात से आप कितना … Read more