भाषा की परिभाषा : अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध

Article Contents1 प्रथम खण्ड1.0.1 भाषा की परिभाषा1.0.2 हिन्दी भाषा का उद्गम भाषा की परिभाषा : अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध Bhasha Ki Paribhasha : Ayodhya Singh Upadhyay Hariaudh प्रथम खण्ड भाषा की परिभाषा भाषा का विषय जितना सरस और मनोरम है, उतना ही गंभीर और कौतूहलजनक। भाषा मनुष्यकृत है अथवा ईश्वरदत्ता उसका आविर्भाव किसी काल विशेष …

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भाषा की परिभाषा : अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध

Article Contents1 द्वितीय खण्ड1.0.1 साहित्य1.0.2 हिन्दी-साहित्य का पूर्व रूप और आरम्भिक काल1.0.3 हिन्दी साहित्य का माधयमिक काल भाषा की परिभाषा : अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध Bhasha Ki Paribhasha : Ayodhya Singh Upadhyay Hariaudh द्वितीय खण्ड साहित्य हिन्दी भाषा साहित्य के विकास पर कुछ लिखने के पहले मैं यह निरूपण करना चाहता हूँ कि साहित्य किसे …

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भाषा की परिभाषा : अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध

Article Contents1 तृतीय खण्ड1.0.1 गद्य-मीमांसा1.0.2 आदि-काल1.0.3 विकास-काल1.0.4 विस्तार-काल1.0.5 प्रचार-काल1.0.6 वर्तमान-काल (काव्य)2 परिशिष्ट भाषा की परिभाषा : अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध Bhasha Ki Paribhasha : Ayodhya Singh Upadhyay Hariaudh तृतीय खण्ड गद्य-मीमांसा संस्कृत का एक वाक्य है-‘गद्यं कवीनां निकषं वदन्ति’। इसका अर्थ यह है कि गद्य ही, विद्वानों की सम्मति में, कवियों की कसौटी है। प्रकट …

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रूप : आचार्य चतुरसेन शास्त्री

रूप : आचार्य चतुरसेन शास्त्री Roop : Acharya Chatursen Shastri उस रूप की बात मैं क्या कहूँ ? काले बालों की रात फैल रही थी और मुखचन्द्र की चाँदनी छिटक रही थी, उस चाँदनी में वह खुला धरा था। सोने के कलसों में भरा हुआ था जिनका मुँह खूब कस कर बँध रहा था, फिर …

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प्यार : आचार्य चतुरसेन शास्त्री

प्यार : आचार्य चतुरसेन शास्त्री Pyar : Acharya Chatursen Shastri उसने कहा―”नहीं”मैंने कहा―”वाह!”उसने कहा―”वाह”मैंने कहा―”हूँ-ऊँ”उसने कहा―”उहुँक”मैंने हँस दिया,उसने भी हँस दिया। अँधेरा था, पर चलचित्रों की भाँति सब दीख पड़ता था। मैं उसीको देख रहा था। जो दीखता था उसे बताना असम्भव है। रक्त की एक एक बूंद नाच रही थी और प्रत्येक क्षण में …

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लज्जा : आचार्य चतुरसेन शास्त्री

लज्जा : आचार्य चतुरसेन शास्त्री Lajja : Acharya Chatursen Shastri हाय! हाय! ना, यह मुझसे न होगा! तुम बीबी जी! बड़ी बुरी हो, तुम्हीं न जाओ। वाह! नहीं, तुम मुझे तंग मत करो। मैं तुम्हारे हाथ जोड़ँ, पैरों पडू, देखो-हाहा खाऊँ, बस इससे तो हद है? अच्छा तुम्हे क्या पड़ी है? तुम जाओ। ठहरो मैं …

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वियोग : आचार्य चतुरसेन शास्त्री

वियोग : आचार्य चतुरसेन शास्त्री Viyog : Acharya Chatursen Shastri वे मुझे महाशय कहकर पुकारते थें और मैं उन्हें हरीश कहा करता था। उनका पूरा नाम तो हरिश्चन्द्र था, पर मै प्यार से उन्हें हरीश कहा करता था। बचपन से जब कि वे नंगे होकर नहाया करते थे―तब तक, जब तक कि वे बड़े भारी …

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अतृप्ति : आचार्य चतुरसेन शास्त्री

अतृप्ति : आचार्य चतुरसेन शास्त्री Atripti : Acharya Chatursen Shastri हृदय! अब तुम क्या करोगे? तुम जिसके लिये इतना सज धज कर बैठे थे उसका तो जवाब आ गया। जन्म से लेकर आज तक जो तुमने सीखा था-जिसका अभ्यास किया था, उसकी तो अब जरूरत ही नहीं रही। न जाने तुम्हारा कैसा स्वभाव था। तुम …

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कविता क्या है ? (चिन्तामणि) : आचार्य रामचन्द्र शुक्ल

Article Contents1 सभ्यता के आवरण और कविता2 कविता और सृष्टि-प्रसार3 मार्मिक तथ्य4 काव्य और व्यवहार5 मनुष्यता की उच्च भूमि6 भावना या कल्पना7 मनोरञ्जन8 सौन्दर्य9 चमत्कारवाद10 पताका11 पंचवटी12 कविता की भाषा13 अलंकार14 कविता पर अत्याचार15 कविता की आवश्यकता कविता क्या है ? (चिन्तामणि) : आचार्य रामचन्द्र शुक्ल Kavita Kya Hai (Nibandh) : Acharya Ramchandra Shukla मनुष्य …

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भारतेन्दु हरिश्चन्द्र (निबन्ध) : आचार्य रामचन्द्र शुक्ल

भारतेन्दु हरिश्चन्द्र (निबन्ध) : आचार्य रामचन्द्र शुक्ल Bharatendu Harishchandra (Nibandh) : Acharya Ramchandra Shukla हिंदी-गद्य-साहित्य का सूत्रपात करनेवाले चार महानुभाव कहे जाते हैं-मुंशी सदासुखलाल, इंशाअल्ला खाँ, लल्लू लाल और सदल मिश्र । ये चारों संवत्‌ १८६० के आस-पास वर्तमान थे । सच पूछिए तो ये गद्य के नमूने दिखानेवाले ही रहे; अपनी परंपरा प्रतिष्ठित करने …

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