राखी का मूल्य – हरिकृष्ण प्रेमी (नाटक)

राखी का मूल्य – हरिकृष्ण प्रेमी (नाटक)

राखी का मूल्य – हरिकृष्ण प्रेमी (नाटक) पात्र परिचय कर्मवती : मेवाड़ की महारानी (महाराणा साँगा की पत्नी) बाघसिंह : एक योद्धा हुमायूँ : बादशाह तातार खाँ : हुमायूँ का मित्र हिन्दुबेग : हुमायूँ का सेनापति (जवाहर बाई, क्षत्रिय, दूत एवं पहरेदार) (प्रथम दृश्य) चित्तौड़ के राजमहल का दृश्य (मेवाड़ के महाराणा साँगा की विधवा पत्नी) कर्मवती : मेवाड़ में ऐसा … Read more

यह राजधानी – हरिकृष्ण कौल (कश्मीरी कहानी)

यह राजधानी – हरिकृष्ण कौल (कश्मीरी कहानी)

यह राजधानी – हरिकृष्ण कौल (कश्मीरी कहानी) इतने बड़े देश की इतनी बड़ी राजधानी। और इसे धुन्ध ने पूरी तरह निगल लिया था। बस स्टॉप के शेड और उसके नीचे बसों की प्रतीक्षा करने वाले दो-चार मुसाफिरों के अतिरिक्त कुछ भी नहीं दिखाई देता था। केवल दाईं ओर अकबर होटल का धुंधला आकार धुन्ध में … Read more

अढाई घंटे – हरिकृष्ण कौल (कश्मीरी कहानी)

अढाई घंटे – हरिकृष्ण कौल (कश्मीरी कहानी)

अढाई घंटे – हरिकृष्ण कौल (कश्मीरी कहानी) हम स्टेशन पहुँचे तो अँधेरा हो चुका था। पहुँचते ही हमने आरक्षण-चार्ट पर दृष्टि डाली। लेकिन यहाँ भी दुर्भाग्य के ही दर्शन हुए। वेटिंग-लिस्ट में जिन भाग्यवानों के नाम मेरे दोस्त से पहले दर्ज थे उन का आरक्षण हो चुका था। लेकिन मेरे ही दोस्त को जाने किस … Read more

(व्यंग्य) किस भारत भाग्य विधाता को पुकारें – हरिशंकर परसाई

(व्यंग्य) किस भारत भाग्य विधाता को पुकारें – हरिशंकर परसाई

(व्यंग्य) किस भारत भाग्य विधाता को पुकारें – हरिशंकर परसाई मेरे एक मुलाकाती हैं। वे कान्यकुब्ज हैं। एक दिन वे चिंता से बोले – अब हम कान्यकुब्जों का क्या होगा? मैंने कहा – आप लोगों को क्या डर है? आप लोग जगह-जगह पर नौकरी कर रहे हैं। राजनीति में ऊँचे पदों पर हैं। द्वारिका प्रसाद … Read more

(व्यंग्य) कहावतों का चक्कर – हरिशंकर परसाई

(व्यंग्य)  कहावतों का चक्कर – हरिशंकर परसाई

(व्यंग्य) कहावतों का चक्कर – हरिशंकर परसाई जब मैं हाईस्कूल में पढता था, तब हमारे अंग्रेजी के शिक्षक को कहावतें और सुभाषित रटवाने की बड़ी धुन थी । सैकड़ों अंग्रेजी कहावतें उन्होंने हमे रटवाई और उनका विश्वास था की यदि हमने नीति वाक्य रट लिए, तो हमारी जिंदगी जरूर सुधर जायेगी । हमारी जिंदगी सुधरी … Read more

(व्यंग्य) कहत कबीर- हरिशंकर परसाई

(व्यंग्य)  कहत कबीर- हरिशंकर परसाई

(व्यंग्य) कहत कबीर- हरिशंकर परसाई संयोग कुछ ऐसा घटा। सन् 1961 में ‘नई दुनिया’ जबलपुर के (तत्कालीन ) संपादक और मेरे (दीर्घकालीन) मित्र (आगे की कौन जानता है ?) मायाराम सुरजन ने हम दोनों के मित्र श्रीबाल पांडे के साथ तय किया कि मैं उनके पत्र में प्रति सप्ताह व्यंग्य-स्तंभ लिखूँ । नाम का सवाल … Read more

(व्यंग्य पत्र) कवि कहानी कब लिखता है? – हरिशंकर परसाई

(व्यंग्य पत्र) कवि कहानी कब लिखता है? – हरिशंकर परसाई

(व्यंग्य पत्र) कवि कहानी कब लिखता है? – हरिशंकर परसाई आजकल नित्य ही कहीं न कहीं कहानी पर बहस होती है और बड़े मजे के वक्तव्य सुनने को मिलते हैं। एक दिन मैं एक क्लासिकल होटल में चाय पी रहा था। क्लासिकल होटल वह है जिसमे जलेबी दोने में दी जाती है और पानी ऊपर … Read more

(निबंध) आँगन में बैंगन- हरिशंकर परसाई

(निबंध) आँगन में बैंगन-  हरिशंकर परसाई

(निबंध) आँगन में बैंगन- हरिशंकर परसाई   मेरे दोस्‍त के आँगन में इस साल बैंगन फल आए हैं। पिछले कई सालों से सपाट पड़े आँगन में जब बैंगन का फल उठा तो ऐसी खुशी हुई जैसे बाँझ को ढलती उम्र में बच्‍चा हो गया हो। सारे परिवार की चेतना पर इन दिनों बैंगन सवार है। … Read more