(व्यंग्य) इति श्री रिसर्चाय – हरिशंकर परसाई

(व्यंग्य) इति श्री रिसर्चाय – हरिशंकर परसाई

(व्यंग्य) इति श्री रिसर्चाय – हरिशंकर परसाई सन् 1950 ईसवी बाबू गोपालचंद्र बड़े नेता थे, क्योंकि उन्होंने लोगों को समझाया था और लोग समझ भी गए थे कि अगर वे स्वतंत्रता-संग्राम में दो बार जेल – ‘ए क्लास’ में – न जाते, तो भारत आजाद होता ही नहीं। तारीख 3 दिसंबर 1950 की रात को … Read more

(व्यंग्य) इंस्पेक्टर मातादीन चांद पर – हरिशंकर परसाई

(व्यंग्य) इंस्पेक्टर मातादीन चांद पर – हरिशंकर परसाई

(व्यंग्य) इंस्पेक्टर मातादीन चांद पर – हरिशंकर परसाई वैज्ञानिक कहते हैं, चाँद पर जीवन नहीं है। सीनियर पुलिस इंस्पेक्टर मातादीन (डिपार्टमेंट में एम. डी. साब) कहते हैं- वैज्ञानिक झूठ बोलते हैं, वहाँ हमारे जैसे ही मनुष्य की आबादी है। विज्ञान ने हमेशा इन्स्पेक्टर मातादीन से मात खाई है। फिंगर प्रिंट विशेषज्ञ कहता रहता है- छुरे … Read more

(व्यंग्य) इस तरह गुजरा जन्मदिन- हरिशंकर परसाई

(व्यंग्य) इस तरह गुजरा जन्मदिन- हरिशंकर परसाई

(व्यंग्य) इस तरह गुजरा जन्मदिन- हरिशंकर परसाई तीस साल पहले बाईस अगस्त को एक सज्जन सुबह मेरे घर आये। उनके हाथ में गुलदस्ता था। उन्होंने स्नेह और आदर से मुझे गुलदस्ता दिया। मैं अकचका गया। मैंने पूछा-यह क्यों ? उन्होंने कहा-आज आपका जन्मदिन है न। मुझे याद आया मैं बाईस अगस्त को पैदा हुआ था। … Read more

(व्यंग्य) ईश्वर की सरकार- हरिशंकर परसाई

(व्यंग्य) ईश्वर की सरकार- हरिशंकर परसाई

(व्यंग्य) ईश्वर की सरकार- हरिशंकर परसाई हमारे देश की सरकार ने देश की प्रतिष्ठा पूरे विश्व में बढ़ाई है। प्रधानमंत्री ने तो किया ही है, हर मंत्री ने भी इसमें योगदान दिया है। पुलिस भी बदल चुकी है, लाठीचार्ज की घटनाओं में कमी आई है, पर गोलीचालन बढ़ गया है। जनता के पैसे से गोलियां … Read more

(व्यंग्य) उखड़े खंभे – हरिशंकर परसाई

(व्यंग्य) उखड़े खंभे – हरिशंकर परसाई

(व्यंग्य) उखड़े खंभे – हरिशंकर परसाई कुछ साथियों के हवाले से पता चला कि कुछ साइटें बैन हो गयी हैं। पता नहीं यह कितना सच है लेकिन लोगों ने सरकार को कोसना शुरू कर दिया। अरे भाई,सरकार तो जो देश हित में ठीक लगेगा वही करेगी न! पता नहीं मेरी इस बात से आप कितना … Read more

(व्यंग्य) उदात्त मन की आखिरी कमजोरी- हरिशंकर परसाई

(व्यंग्य) उदात्त मन की आखिरी कमजोरी-  हरिशंकर परसाई

(व्यंग्य) उदात्त मन की आखिरी कमजोरी- हरिशंकर परसाई एक किंचित् कवि, किंचित् समाजसेवी को मकान की जरूरत थी। मकान कलेक्टर आवंटित करता है। कलेक्टर के बारे में यह आम राय थी कि वह खुशामदपसन्द नहीं है । वैसे जिसे खुशामद पसन्द नहीं है, उसकी खुशामद यह कहकर की जा सकती है कि आप खुशामद पसन्द … Read more

(व्यंग्य) एक अशुद्ध बेवकूफ – हरिशंकर परसाई

(व्यंग्य) एक अशुद्ध बेवकूफ – हरिशंकर परसाई

(व्यंग्य) एक अशुद्ध बेवकूफ – हरिशंकर परसाई बिना जाने बेवकूफ बनाना एक अलग और आसान चीज है। कोई भी इसे निभा देता है। मगर यह जानते हुए कि मैं बेवकूफ बनाया जा रहा हूं और जो मुझे कहा जा रहा है, वह सब झूठ है- बेवकूफ बनते जाने का एक अपना मजा है। यह तपस्या … Read more

(व्यंग्य) एक और जन्म-दिन- हरिशंकर परसाई

(व्यंग्य) एक और जन्म-दिन- हरिशंकर परसाई

(व्यंग्य) एक और जन्म-दिन- हरिशंकर परसाई मेरी जन्म-तीथि जन्ममास के पहलेवाले महीने में छपी थी। अगस्त के एक दिन सुबह कमरे में घुसा तो देखा, एक बंधु बैठे हैं और कुछ सकुचा-से रहे हैं। और वक़्त मिलते थे तो बड़ी बेतक़ल्लूफ़ी से हँसी-मज़ाक करते थे। उस दिन बहुत गंभीर बैठे थे, जैसे कोई बुरी खबर … Read more

(व्यंग्य) एक गौभक्त से भेंट- हरिशंकर परसाई

(व्यंग्य) एक गौभक्त से भेंट- हरिशंकर परसाई

(व्यंग्य) एक गौभक्त से भेंट- हरिशंकर परसाई एक शाम रेलवे स्टेशन पर एक स्वामीजी के दर्शन हो गए। ऊँचे, गोरे और तगड़े साधु थे। चेहरा लाल। गेरुए रेशमी कपड़े पहने थे। साथ एक छोटे साइज़ का किशोर संन्यासी था। उसके हाथ में ट्रांजिस्टर था और वह गुरु को रफ़ी के गाने के सुनवा रहा था। … Read more

(व्यंग्य) एक मध्यमवर्गीय कुत्ता – हरिशंकर परसाई

(व्यंग्य)  एक मध्यमवर्गीय कुत्ता – हरिशंकर परसाई

(व्यंग्य) एक मध्यमवर्गीय कुत्ता – हरिशंकर परसाई मेरे मित्र की कार बँगले में घुसी तो उतरते हुए मैंने पूछा, ‘इनके यहाँ कुत्ता तो नहीं है?’ मित्र ने कहा, ‘तुम कुत्ते से बहुत डरते हो!’ मैंने कहा, ‘आदमी की शक्ल में कुत्ते से नहीं डरता। उनसे निपट लेता हूँ। पर सच्चे कुत्ते से बहुत डरता हूँ।’ … Read more