व्यंग्य- क्रांतिकारी की कथा – हरिशंकर परसाई

व्यंग्य- क्रांतिकारी की कथा – हरिशंकर परसाई

व्यंग्य- क्रांतिकारी की कथा – हरिशंकर परसाई   ‘क्रांतिकारी’ उसने उपनाम रखा था। खूब पढ़ा-लिखा युवक। स्वस्थ सुंदर। नौकरी भी अच्छी। विद्रोही। मार्क्स-लेनिन के उद्धरण देता, चे ग्वेवारा का खास भक्त। कॉफी हाउस में काफी देर तक बैठता। खूब बातें करता। हमेशा क्रांतिकारिता के तनाव में रहता। सब उलट-पुलट देना है। सब बदल देना है। … Read more

लघु व्यंग्य, कथाएँ – हरिशंकर परसाई

लघु व्यंग्य, कथाएँ – हरिशंकर परसाई

लघु व्यंग्य, कथाएँ – हरिशंकर परसाई     1. बाएं क्यों चलें? साधो हमारे देश का आदमी नियम मान ही नहीं सकता। वह मुक्त आत्मा है। वह सड़क के बीच चलकर प्राण दे देगा, पर बाएं नहीं चलेगा। मरकर स्वर्ग पहुंचेगा, तो वहां भी सड़क के नियम नहीं मानेगा। फरिश्ते कहेंगे कि बाएं चलो। तो … Read more

व्यंग्य- अध्यक्ष महोदय (मिस्टर स्पीकर) – हरिशंकर परसाई

व्यंग्य- अध्यक्ष महोदय (मिस्टर स्पीकर) – हरिशंकर परसाई

व्यंग्य- अध्यक्ष महोदय (मिस्टर स्पीकर) – हरिशंकर परसाई विधानमंडलों में थोड़ी नोंक-झोंक, दिलचस्प टिप्पणी, रिमार्क, हल्की-फुल्की बातें सब कहीं चलती हैं। जब अंग्रेज सरकार थी, तब केंद्र में ‘सेंट्रल असेंबली’ थी। इसमें बड़े जबरदस्त लोग थे। सरदार वल्लभ भाई पटेल के बड़े भाई विट्ठल भाई पटेल अध्यक्ष थे। असेंबली के अधिवेशन के पहले उन्होंने देखा, … Read more

व्यंग्य- अनुशासन – हरिशंकर परसाई

व्यंग्य- अनुशासन – हरिशंकर परसाई

व्यंग्य- अनुशासन – हरिशंकर परसाई एक अध्यापक था। वह सरकारी नौकरी में था ।मास्टर की पत्नी बीमार थी । अस्पताल में थी। तभी उसके तबादले का ऑर्डर हो गया। शिक्षा विभाग के बड़े साहब उसी मुहल्ले में रहते थे। उसका बंगला मास्टर के घर से दिखता था। वह उनजे बंगले के सामने से निकलता तो … Read more

लेख-अंधविश्वास से वैज्ञानिक दृष्टि – हरिशंकर परसाई

लेख-अंधविश्वास से वैज्ञानिक दृष्टि – हरिशंकर परसाई

लेख-अंधविश्वास से वैज्ञानिक दृष्टि – हरिशंकर परसाई मेरे एक मित्र को पीलिया हो गया था। वे अस्पताल में भर्ती थे। प्रभावशाली आदमी थे। सब डॉक्टर लगे थे। एक दिन मैं देखने गया तो पाया कि वे पानी की थाली में हथेलियां रखे हैं, और एक पण्डित मंत्र पढ़ रहा है। कार्यक्रम खत्म होने पर मैंने … Read more

लघुकथा- अपना-पराया – हरिशंकर परसाई

लघुकथा- अपना-पराया –  हरिशंकर परसाई

लघुकथा- अपना-पराया – हरिशंकर परसाई   ‘आप किस स्‍कूल में शिक्षक हैं?’ ‘मैं लोकहितकारी विद्यालय में हूं। क्‍यों, कुछ काम है क्‍या?’ ‘हाँ, मेरे लड़के को स्‍कूल में भरती करना है।’ ‘तो हमारे स्‍कूल में ही भरती करा दीजिए।’ ‘पढ़ाई-‍वढ़ाई कैसी है? ‘नंबर वन! बहुत अच्‍छे शिक्षक हैं। बहुत अच्‍छा वातावरण है। बहुत अच्‍छा स्‍कूल … Read more

व्यंग्य- अपनी अपनी बीमारी -हरिशंकर परसाई

व्यंग्य- अपनी अपनी बीमारी -हरिशंकर परसाई

व्यंग्य- अपनी अपनी बीमारी -हरिशंकर परसाई हम उनके पास चंदा माँगने गए थे। चंदे के पुराने अभ्यासी का चेहरा बोलता है। वे हमें भाँप गए। हम भी उन्हें भाँप गए। चंदा माँगनेवाले और देनेवाले एक-दूसरे के शरीर की गंध बखूबी पहचानते हैं। लेनेवाला गंध से जान लेता है कि यह देगा या नहीं। देनेवाला भी … Read more

व्यंग्य- अपील का जादू – हरिशंकर परसाई

व्यंग्य- अपील का जादू – हरिशंकर परसाई

व्यंग्य- अपील का जादू – हरिशंकर परसाई एक देश है! गणतंत्र है! समस्याओं को इस देश में झाड़-फूँक, टोना-टोटका से हल किया जाता है! गणतंत्र जब कुछ चरमराने लगता है, तो गुनिया बताते हैं कि राष्ट्रपति की बग्घी के कील-काँटे में कुछ गड़बड़ आ गई है। राष्ट्रपति की बग्घी की मरम्मत कर दी जाती है … Read more

व्यंग्य- अफसर कवि – हरिशंकर परसाई

व्यंग्य- अफसर कवि – हरिशंकर परसाई

व्यंग्य- अफसर कवि – हरिशंकर परसाई एक कवि थे। वे राज्य सरकार के अफसर भी थे। अफसर जब छुट्‌टी पर चला जाता, तब वे कवि हो जाते और जब कवि छुट्‌टी पर चला जाता, तब वे अफसर हो जाते। एक बार पुलिस की गोली चली और दस-बारह लोग मारे गए। उनके भीतर का अफसर तब … Read more

व्यंग्य- अयोध्या में खाता-बही- हरिशंकर परसाई

व्यंग्य- अयोध्या में खाता-बही- हरिशंकर परसाई

व्यंग्य- अयोध्या में खाता-बही- हरिशंकर परसाई पोथी में लिखा है – जिस दिन राम, रावण को परास्त करके अयोध्या आए, सारा नगर दीपों से जगमगा उठा। यह दीपावली पर्व अनन्तकाल तक मनाया जाएगा। पर इसी पर्व पर व्यापारी बही-खाता बदलते हैं और खाता-बही लाल कपड़े में बांधी जाती है। प्रश्न है – राम के अयोध्या … Read more