लघुकथा- अपना-पराया – हरिशंकर परसाई

लघुकथा- अपना-पराया –  हरिशंकर परसाई

लघुकथा- अपना-पराया – हरिशंकर परसाई   ‘आप किस स्‍कूल में शिक्षक हैं?’ ‘मैं लोकहितकारी विद्यालय में हूं। क्‍यों, कुछ काम है क्‍या?’ ‘हाँ, मेरे लड़के को स्‍कूल में भरती करना है।’ ‘तो हमारे स्‍कूल में ही भरती करा दीजिए।’ ‘पढ़ाई-‍वढ़ाई कैसी है? ‘नंबर वन! बहुत अच्‍छे शिक्षक हैं। बहुत अच्‍छा वातावरण है। बहुत अच्‍छा स्‍कूल … Read more

व्यंग्य- अपनी अपनी बीमारी -हरिशंकर परसाई

व्यंग्य- अपनी अपनी बीमारी -हरिशंकर परसाई

व्यंग्य- अपनी अपनी बीमारी -हरिशंकर परसाई हम उनके पास चंदा माँगने गए थे। चंदे के पुराने अभ्यासी का चेहरा बोलता है। वे हमें भाँप गए। हम भी उन्हें भाँप गए। चंदा माँगनेवाले और देनेवाले एक-दूसरे के शरीर की गंध बखूबी पहचानते हैं। लेनेवाला गंध से जान लेता है कि यह देगा या नहीं। देनेवाला भी … Read more

व्यंग्य- अपील का जादू – हरिशंकर परसाई

व्यंग्य- अपील का जादू – हरिशंकर परसाई

व्यंग्य- अपील का जादू – हरिशंकर परसाई एक देश है! गणतंत्र है! समस्याओं को इस देश में झाड़-फूँक, टोना-टोटका से हल किया जाता है! गणतंत्र जब कुछ चरमराने लगता है, तो गुनिया बताते हैं कि राष्ट्रपति की बग्घी के कील-काँटे में कुछ गड़बड़ आ गई है। राष्ट्रपति की बग्घी की मरम्मत कर दी जाती है … Read more

व्यंग्य- अफसर कवि – हरिशंकर परसाई

व्यंग्य- अफसर कवि – हरिशंकर परसाई

व्यंग्य- अफसर कवि – हरिशंकर परसाई एक कवि थे। वे राज्य सरकार के अफसर भी थे। अफसर जब छुट्‌टी पर चला जाता, तब वे कवि हो जाते और जब कवि छुट्‌टी पर चला जाता, तब वे अफसर हो जाते। एक बार पुलिस की गोली चली और दस-बारह लोग मारे गए। उनके भीतर का अफसर तब … Read more

व्यंग्य- अयोध्या में खाता-बही- हरिशंकर परसाई

व्यंग्य- अयोध्या में खाता-बही- हरिशंकर परसाई

व्यंग्य- अयोध्या में खाता-बही- हरिशंकर परसाई पोथी में लिखा है – जिस दिन राम, रावण को परास्त करके अयोध्या आए, सारा नगर दीपों से जगमगा उठा। यह दीपावली पर्व अनन्तकाल तक मनाया जाएगा। पर इसी पर्व पर व्यापारी बही-खाता बदलते हैं और खाता-बही लाल कपड़े में बांधी जाती है। प्रश्न है – राम के अयोध्या … Read more

व्यंग्य- अश्लील – हरिशंकर परसाई

व्यंग्य- अश्लील – हरिशंकर परसाई

व्यंग्य- अश्लील – हरिशंकर परसाई शहर में ऐसा शोर था कि अश्‍लील साहित्‍य का बहुत प्रचार हो रहा है। अखबारों में समाचार और नागरिकों के पत्र छपते कि सड़कों के किनारे खुलेआम अश्‍लील पुस्‍तकें बिक रही हैं। दस-बारह उत्‍साही समाज-सुधारक युवकों ने टोली बनाई और तय किया कि जहाँ भी मिलेगा हम ऐसे साहित्‍य को … Read more

व्यंग्य-असहमत- हरिशंकर परसाई

व्यंग्य-असहमत- हरिशंकर परसाई

व्यंग्य-असहमत- हरिशंकर परसाई यह सिर्फ़ दो आदमियों की बातचीत है – “भारतीय सेना लाहौर की तरफ़ बढ़ गई- अंतर्राष्ट्रीय सीमा पार करके।” “हाँ, सुना तो। छम्ब में पाकिस्तानी सेना को रोकने के लिए यह ज़रुरी है।” “खाक ज़रूरी है! जहाँ वे लड़ें, वहां लड़ना चाहिए या हर कहीं घुसना चाहिए?” “हाँ उधर नहीं बढ़ना था।” … Read more

व्यंग्य-आध्यात्मिक पागलों का मिशन -हरिशंकर परसाई

व्यंग्य-आध्यात्मिक पागलों का मिशन -हरिशंकर परसाई

व्यंग्य-आध्यात्मिक पागलों का मिशन -हरिशंकर परसाई भारत के सामने अब एक बड़ा सवाल है – अमेरिका को अब क्या भेजे? कामशास्त्र वे पढ़ चुके, योगी भी देख चुके। संत देख चुके। साधु देख चुके। गाँजा और चरस वहाँ के लड़के पी चुके। भारतीय कोबरा देख लिया। गिर का सिंह देख लिया। जनपथ पर ‘प्राचीन’ मूर्तियाँ … Read more

व्यंग्य – आवारा भीड़ के खतरे -हरिशंकर परसाई

व्यंग्य – आवारा भीड़ के खतरे -हरिशंकर परसाई

व्यंग्य – आवारा भीड़ के खतरे -हरिशंकर परसाई एक अंतरंग गोष्ठी सी हो रही थी युवा असंतोष पर। इलाहाबाद के लक्ष्मीकांत वर्मा ने बताया – पिछली दीपावली पर एक साड़ी की दुकान पर काँच के केस में सुंदर साड़ी से सजी एक सुंदर मॉडल खड़ी थी। एक युवक ने एकाएक पत्थर उठाकर उस पर दे … Read more

तट की खोज- हरिशंकर परसाई

तट की खोज- हरिशंकर परसाई

Contents1 भूमिका2 शीला3 मनोहर लघु उपन्यास- तट की खोज- हरिशंकर परसाई भूमिका मैं आज भी नहीं समझ पाता कि ‘तट की खोज’ बहुत साल पहले मुझसे कैसे लिखा गया। यह एक ऐसी कहानी है जिसे लघु उपन्यास कहा जाता है। मूल घटना मुझे अपने कवि मित्र ने सुनाई थी। वे काफी भावुक थे। मेरी उम्र … Read more