फ़ासले- हाजरा मसरूर (कहानी)
फ़ासले- हाजरा मसरूर (कहानी) नानी को ऐ’न वक़्त पर नानीपने की सूझ रही थी… “भला चक़माक़ पत्थर में रगड़ लगे और चिंगारी न गिरे?”, नानी दरवाज़े के पास अड़ कर बोलीं और सितारा का जी चाहा कि अपना सर पीट ले। “चक़माक़! चक़माक़ यहाँ कहाँ से टपक पड़ा?”, सितारा ने बड़े ज़ब्त के साथ सवाल … Read more