माघ शुक्ल एकादशी – जया एकादशी

Magh Shukla Paksha Ekadashi-Jaya Ekadashi

भारतवर्ष में एकादशी व्रत का बहुत बड़ा महत्व माना गया है| ऐसा माना जाता है की एकादशी का व्रत पापों से छुटकारा पाने और स्वयं को सात्त्विक बनाने के लिए सबसे सुलभ साधन है|एकादशी  का व्रत बहुत कम साधनो में भी किया जा सकता है | इसलिए ग़रीब से ग़रीब व्यक्ति भी इसे आसानी से कर सकता है| आवश्यकता है सिर्फ़ श्रद्धा , विश्वास और सात्विक भाव से निष्पाप राहते हुए प्रभु की भक्ति सहित व्रत और रात्रि जागरण| रात्रि जागरण प्रभु के भजन कीर्तन के साथ होना चाहिए| एकादशी की कथायें स्वयं इस व्रत की सरल प्रक्रिया को प्रकट करती हैं|

एकादशी का व्रत अनेक कष्टों को दूर करने वाला भी कहा गया है| यह संसारिक भोग के साथ मोक्ष भी प्रदान करने वाला है| हर महीने में दो एकादशियाँ होती हैं, और हर एकादशी का विशेष महत्व होता है और यह विशेष फल प्रदान करने वाला होता है|माघ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी की को जया एकादशी कहते हैं| जया एकादशी महान पुण्य देने वाली और बुरी योनियों से भी छुटकारा दिलाने में समर्थ मानी गयी है| ऐसा कहा  जाता है की जो मनुष्य जया एकादशी का व्रत करता है वह सब जप, तप, दान धर्म का फल पाता है क्योंकि एकादशी व्रत का प्रभाव इन सबसे बढ़कर माना गया है|

जया एकादशी के विषय में जो कथा प्रचलित है उसके अनुसार धर्मराज युधिष्ठिर भगवान श्री कृष्ण से निवेदन करते हैं कि माघ शुक्ल एकादशी को किनकी पूजा करनी चाहिए, तथा इस एकादशी का क्या महात्म्य है। श्री कृष्ण कहते हैं माघ शुक्ल पक्ष की एकादशी को “जया एकादशी” कहते हैं। यह एकादशी बहुत ही पुण्यदायी है, इस एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति नीच योनि जैसे भूत, प्रेत, पिशाच की योनि से मुक्त हो जाता है।

जया एकादशी की कथा यह भी लक्षित करती है की देव कार्य के समय यदि कभी ग़लती से कामासाक्त हो जाए तो जया एकादशी से उसका प्रायश्चित कर सकते हैं| कभी कभार यदि देव कार्य जैसे हवन, पूजा, अर्चना के समय यदि ग़लती से मन में कामासाक्त विचार आ जायें तो उसके लिए जया एकादशी का व्रत कर लेना चाहिए | क्योंकि देव अपराध के कारण इतर योनि में जन्म हो सकता है या कोई और परिणाम हो सकते हैं| जया एकादशी की कथा इस बात तो स्पष्ट रूप से प्रमाणित करती है|

जया एकादशी की कथा:

धर्मराज युधिष्ठिर बोले,” हे कृष्ण! आप ने माघ मास के कृष्ण पक्ष की षटतिला एकादशी  का वर्णन किया, अत्यंत प्रिय लगा| अप स्वेदज, अंडज, उद्भिज और जरायुज – चारो प्रकार के जीवों के उत्पन्न कर्ता, पालन तथा नाश करने वाले हैं| अब आप कृपा कर माघ शुक्ल एकादशी का वर्णन कीजिए| इसका क्या नाम है, इसके व्रत की विधि क्या है और इसमे किस देवता का पूजन किया जाता है?

श्री कृष्ण भगवान बोले – हे राजन , माघ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम जया एकादशी है| इस एकादशी का व्रत करने से मनुष्य ब्रह्म हत्या जैसे पापों से छूट कर मोक्ष को प्राप्त होता है| इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य  कुयोनि अर्थात भूत, प्रेत , पिशाच, आदि योनियों से मुक्त हो जाता है| अतः इस एकादशी के व्रत को विधि पूर्वक करना चाहिए| अब मैं तुमसे पद्म पुराण में वर्णित इस एकादशी की महिमा की एक पौराणिक कथा कहता हूँ |

देवराज इंद्र स्वर्ग में राज्य करते थे और अन्य सभी देव गण सुख पूर्वक वहाँ रहते थे| एक समय इंद्र नंदन वन में अप्सराओं के साथ विहार कर रहे थे | गंधर्व गान कर रहे थे | उन गन्धर्वो में प्रसिद्ध पुष्पदंत तथा उसकी कन्या पुष्पवती और चित्रसेन तथा उसकी पत्नी मालिनी भी थे| मालिनी का पुत्र पुष्पवान और उसका पुत्र माल्यवान भी उपस्थित थे| गंधर्व कन्या पुष्पवती ने माल्यवान को देखा तो उस पर मोहित हो गयी| माल्यवान भी उस पर मोहित हो गया|  पुष्पव ती ने अपने रूप- लावण्य और हाव-भाव से माल्यवान को आकर्षित कर उसे अपने वश में कर लिया| माल्यवान और पुष्पवती को यह विचार ना रहा की इंद्र की सभा में शाप मिल जाएगा| परस्पर दोनो की दृष्टि लड़ने लगी|

हे राजन! पुष्पवती भी अत्यंत सुंदर कन्या थी | अब वे इंद्र को प्रसन्न करने के लिए सभा में गान करने लगे| परंतु एक दूसरे पर मोहित हो जाने के कारण उनका चित्त भ्रमित हो गया , इससे संगीत की लय टूट गयी| संगीत प्रेमियों को यह बुरा लगा| संगीत एक साधना है और संगीत पवित्र माना जाता है तथा इस साधना को भ्रष्ट करना अपराध है| देवराज इंद्र इनकी भाव  भंगिमाओं को देखकर इनके प्रेम को समझ गये और उन्होने इसमे अपना अपमान समझ कर उनको श्राप दे दिया |

इंद्र ने कहा,” संगीत साधना की पवित्रता को नष्ट करने वाले मूर्खों! माल्यवान और पुष्पवती तुमने सरस्वती की पूजा में विघ्न डाला है| तुमने मेरी आज्ञा का उल्लंघन किया है, तुम्हे धिक्कार है| अब तुम दोनो को स्त्री- पुरुष के रूप में मर्त्य लोक में जाकर पिशाच रूप धारण कर अपने कर्मों का फल भोगना होगा| भारी सभा में अपमान करने वाले को ऐसा दंड दिया जाता है | तुमने गुरुजनो की सभा में संयम से रहने के नियम को तोड़ा है, इसलिए अब तुम्हे देवलोक का निवास नही मिल पाएगा| तुम दोनो अधम पिशाच , असंयमी का सा जीवन बिताओगे| अपवित्र जल और अपवित्र भोजन ही तुम्हारे योग्य है|

इंद्र का ऐसा श्राप सुनकर वे अत्यंत दुखी हुए और श्रापवश दोनो मर्त्य लोक में आ गये और हिमालय पर्वत पर दुखपूर्वक अपना जीवन व्यतीत करने लगे| यदि वे पापियों के देश में जाते तो खाना-पीना मनमाना मिल जाता परंतु श्राप से श्रीघ्र उद्धार ना होता| इस कारण उन्होने तपोभूमि बद्रीनाथ में निवास किया| उन्हे गंध, रस तथा स्पर्श आदि कुछ भी ज्ञात ना था | यहाँ उन्हे अपार दुख मिल रहे थे| गुरुजनो की सभा में संयम से रहना चाहिए और संगीत की परम पुनीत साधना में अपनी भावना अपवित्र ना होने दें, यही बात उन दोनो के सोच का कारण बनी| वे बीहड़ वनो में कुरूप सूरते लिए और अभक्ष्य भक्षण करते हुए अपना जीवन बिता रहे थे| हिमालय के ठंडे प्रदेश में उनका जीवन अत्यंत कष्टमय था| उन्हे एक क्षण के लिए भी निद्रा नही आती थी| वहाँ अत्यंत सर्दी थी| इससे उनके रोम खड़े रहते और मारे शीत के उनके दाँत किटकिटाते रहते| दोनो पश्चाताप की अग्नि में जल रहे थे और उन्हे अपनो से बिछड़ने का बड़ा दुख था| एक दिन पिशाच ने अपनी स्त्री से कहा की , हमने पिछले जन्म में ऐसे कौन से पाप किए थे की इस जन्म में हमे यह अत्यंत दुखदाई पिशाच योनि प्राप्त हुई|

दैवयोग से तभी माघ मास के शुक्ल पक्ष की जया एकादशी आ गयी| निराशा से घिरे होने के कारण उस दिन उन्होने सवेरे से कुछ भी भोजन नही किया और ना ही कोई पाप कर्म किया| केवल फल फूल खा कर ही दिन व्यतीत किया और सायंकाल व्यथित मन से  पीपल के वृक्ष के नीचे बैठ गये | उस समय सूर्य देव अस्त हो रहे थे| उस रात अत्यंत ठंड थी , इस कारण वे दोनो शीत के मारे अति दुखी हो कर , मृतक के समान आपस में एक दूसरे से  चिपटे  हुए थे| उस रात्रि उन्हे निद्रा भी नही आई| वे प्रभु का ध्यान करके दिन भर अपनी ग़लतियों की क्षमा माँगते रहे थे, रात्रि को भी उन्हे ईश्वर का ध्यान बना रहा|

श्री कृष्ण बोले,” हे राजन संयोग से उस दिन जया एकादशी की तिथि थी| दिन में व्रत और रात्रि में ईश्वर का ध्यान और जागरण के कारण अनजाने में ही पुण्य का कारण बन गया| उनका यह व्रत हो गया | जया एकादशी के उपवास और रात्रि जागरण करने से दूसरे दिन होते ही उनकी पिशाच योनि छूट गयी| वे अत्यंत सुंदर गंधर्व और अप्सरा के देह धारण कर, सुंदर वस्त्र आभूषणो से अलंकृत हो स्वर्ग लोक को प्रस्थान कर गये| उस समय में आकाश में देवता तथा गंधर्व उनकी स्तुति करते हुए पुष्प वर्षा करने लगे| स्वर्ग लोक में जाअकर उन दोनो ने देवराज इंद्र को प्रणाम किया| देवराज इंद्र उनको पहले जैसे रूप में देख कर आश्चर्यान्वित हुए और | इंद्र ने उनसे पूछा की अपनी पिशाच योनि से किस प्रकार छुटकारा पाया, मुझे  बताओ |

माल्यवान अपनी भूल पर पछताता हुआ बड़ी विनम्रता से बोला,” देवराज इंद्र ! भगवान विष्णु की कृपा और जया एकादशी के व्रत के प्रभाव से हमारी पिशाच देह छूटी है|

यह सुनकर देवराज इंद्र बहुत प्रसन्न हुए और बोले,”हे माल्यवान भगवान की कृपा और जया एकादशी का व्रत करने से ना केवल तुम्हारी पिशाच योनि छूट गयी और तुम पवित्र हो गये , बल्कि तुम्हारे सभी कुल वाले और हम देवताओं के भी भी वंदनीय हो गये| क्योंकि भगवान विष्णु और शिव के भक्त सदैव वंदनीय रहते हैं| अतः आपको धन्य है! धन्य है! अब आप पुष्पवती के साथ जाकर विहार करो|

पुष्पवती ने भी निवेदन किया ,” हे देवराज इंद्र! आपका श्राप हमे वरदान सिद्ध हुआ और हमें भगवान विष्णु की अनंत कृपा प्राप्त हुई|

श्री कृष्ण कहने लगे,” हे धर्मराज युधिष्ठिर! इस जया एकादशी के व्रत से समस्त  कुयोनि अर्थात बुरी योनि छूट जाती है| इस व्रत के प्रभाव से पिशाच योनि मे पड़ा व्यक्ति भी मुक्ति पा लेता है| जिस मनुष्य ने इस एकादशी का व्रत किया है, मानो उसने सब यज्ञ, जप, दान आदि कर लिए| क्योंकि एकादशी का व्रत सब जप, यज्ञ, दान आदि से अधिक फलदाई है| जो मनुष्य जया एकादशी का व्रत करते है, वे अवश्य ही एक हज़ार वर्ष तक स्वर्ग में निवास करते हैं|

व्रत विधि:

जया एकादशी के दिन जगपति जगदीश्वर भगवान विष्णु ही सर्वथा पूजनीय हैं। जो श्रद्धालु भक्त इस एकादशी का व्रत रखते हैं उन्हें दशमी तिथि से को एक समय आहार करना चाहिए। इस बात का ध्यान रखें कि आहार सात्विक हो। एकादशी के दिन श्री विष्णु का ध्यान करके संकल्प करें और फिर धूप, दीप, चंदन, फल, तिल, एवं पंचामृत से विष्णु की पूजा करे। भगवान की षोड़शोपचार पूजा करें! पूजा के बाद जया एकादशी की कथा (उपर दी हुई है) अवश्य पढ़ें|

पूरे दिन व्रत रखें संभव हो तो रात्रि में भी व्रत रखकर जागरण करें। अगर रात्रि में व्रत संभव न हो तो फलाहार कर सकते हैं। द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को भोजन करवाकर उन्हें जनेऊ सुपारी देकर विदा करें फिर भोजन करें। इस प्रकार नियम निष्ठा से व्रत रखने से व्यक्ति पिशाच योनि से भी मुक्त हो जाता है।

एकादशी के दिन कम से कम दो बार पूजा , सुबह और शाम को अवश्य करें| द्वादशी के दिन प्रातः पुनः पूजा करके ब्राह्मण को दान , भोजन और दक्षिणा देकर ही स्वयं अन्न ग्रहण करें|द्वादशी के दिन भी सामिष(माँसाहारी) भोजन से बचें|

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