रूप : आचार्य चतुरसेन शास्त्री

रूप : आचार्य चतुरसेन शास्त्री Roop : Acharya Chatursen Shastri उस रूप की बात मैं क्या कहूँ ? काले बालों की रात फैल रही थी और मुखचन्द्र की चाँदनी छिटक रही थी, उस चाँदनी में वह खुला धरा था। सोने के कलसों में भरा हुआ था जिनका मुँह खूब कस कर बँध रहा था, फिर …

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प्यार : आचार्य चतुरसेन शास्त्री

प्यार : आचार्य चतुरसेन शास्त्री Pyar : Acharya Chatursen Shastri उसने कहा―”नहीं”मैंने कहा―”वाह!”उसने कहा―”वाह”मैंने कहा―”हूँ-ऊँ”उसने कहा―”उहुँक”मैंने हँस दिया,उसने भी हँस दिया। अँधेरा था, पर चलचित्रों की भाँति सब दीख पड़ता था। मैं उसीको देख रहा था। जो दीखता था उसे बताना असम्भव है। रक्त की एक एक बूंद नाच रही थी और प्रत्येक क्षण में …

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लज्जा : आचार्य चतुरसेन शास्त्री

लज्जा : आचार्य चतुरसेन शास्त्री Lajja : Acharya Chatursen Shastri हाय! हाय! ना, यह मुझसे न होगा! तुम बीबी जी! बड़ी बुरी हो, तुम्हीं न जाओ। वाह! नहीं, तुम मुझे तंग मत करो। मैं तुम्हारे हाथ जोड़ँ, पैरों पडू, देखो-हाहा खाऊँ, बस इससे तो हद है? अच्छा तुम्हे क्या पड़ी है? तुम जाओ। ठहरो मैं …

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वियोग : आचार्य चतुरसेन शास्त्री

वियोग : आचार्य चतुरसेन शास्त्री Viyog : Acharya Chatursen Shastri वे मुझे महाशय कहकर पुकारते थें और मैं उन्हें हरीश कहा करता था। उनका पूरा नाम तो हरिश्चन्द्र था, पर मै प्यार से उन्हें हरीश कहा करता था। बचपन से जब कि वे नंगे होकर नहाया करते थे―तब तक, जब तक कि वे बड़े भारी …

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अतृप्ति : आचार्य चतुरसेन शास्त्री

अतृप्ति : आचार्य चतुरसेन शास्त्री Atripti : Acharya Chatursen Shastri हृदय! अब तुम क्या करोगे? तुम जिसके लिये इतना सज धज कर बैठे थे उसका तो जवाब आ गया। जन्म से लेकर आज तक जो तुमने सीखा था-जिसका अभ्यास किया था, उसकी तो अब जरूरत ही नहीं रही। न जाने तुम्हारा कैसा स्वभाव था। तुम …

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कविता क्या है ? (चिन्तामणि) : आचार्य रामचन्द्र शुक्ल

कविता क्या है ? (चिन्तामणि) : आचार्य रामचन्द्र शुक्ल Kavita Kya Hai (Nibandh) : Acharya Ramchandra Shukla मनुष्य अपने भावों, विचारों और व्यापारों को लिये-दिये दूसरों के भावों, विचारों और व्यापारों के साथ कहीं मिलता और कहीं लड़ाता हुआ अन्त तक चला चलता है और इसी को जीना कहता है। जिस अनन्त-रूपात्मक क्षेत्र में यह …

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भारतेन्दु हरिश्चन्द्र (निबन्ध) : आचार्य रामचन्द्र शुक्ल

भारतेन्दु हरिश्चन्द्र (निबन्ध) : आचार्य रामचन्द्र शुक्ल Bharatendu Harishchandra (Nibandh) : Acharya Ramchandra Shukla हिंदी-गद्य-साहित्य का सूत्रपात करनेवाले चार महानुभाव कहे जाते हैं-मुंशी सदासुखलाल, इंशाअल्ला खाँ, लल्लू लाल और सदल मिश्र । ये चारों संवत्‌ १८६० के आस-पास वर्तमान थे । सच पूछिए तो ये गद्य के नमूने दिखानेवाले ही रहे; अपनी परंपरा प्रतिष्ठित करने …

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तुलसी का भक्ति-मार्ग (निबन्ध) : आचार्य रामचन्द्र शुक्ल

तुलसी का भक्ति-मार्ग (निबन्ध) : आचार्य रामचन्द्र शुक्ल Tulsi Ka Bhakti-Marg (Nibandh) : Acharya Ramchandra Shukla भक्ति रस का पूर्ण परिपाक जैसा तुलसीदासजी में देखा जाता है वैसा अन्यत्र नहीं। भक्ति में प्रेम के अतिरिक्त आलंबन के महत्त्व और अपने दैन्य का अनुभव परम आवश्यक अंग हैं। तुलसी के हृदय से इन दोनों अनुभवों के …

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‘मानस’ की धर्म-भूमि (निबन्ध) : आचार्य रामचन्द्र शुक्ल

‘मानस’ की धर्म-भूमि (निबन्ध) : आचार्य रामचन्द्र शुक्ल Manas’ Ki Dharm-Bhumi (Nibandh) : Acharya Ramchandra Shukla धर्म की रसात्मक अनुभूति का नाम भक्ति है, यह हम कहीं पर कह चुके हैं। धर्म है ब्रह्म के सत्स्वरूप की व्यक्त प्रवृत्ति, जिसकी असीमता का आभास अखिल विश्वस्थिति में मिलता है। इस प्रवृत्ति का साक्षात्कार परिवार और समाज …

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काव्य में लोक-मंगल की साधनावस्था (निबन्ध) : आचार्य रामचन्द्र शुक्ल

काव्य में लोक-मंगल की साधनावस्था (निबन्ध) : आचार्य रामचन्द्र शुक्ल Kavya Mein Lok-Mangal Ki Sadhanavastha (Nibandh) : Acharya Ramchandra Shukla तदेजति तन्नैजति—ईशावास्योपनिषद् आत्मबोध और जगद्बोधा के बीच ज्ञानियों ने गहरी खाई खोदी पर हृदय ने कभी उसकी परवा न की; भावना दोनों को एक ही मनकर चलती रही। इस जगत् के बीच जिस आनंद मंगल …

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