उत्साह (निबन्ध) : आचार्य रामचन्द्र शुक्ल

उत्साह (निबन्ध) : आचार्य रामचन्द्र शुक्ल Utsah (Nibandh) : Acharya Ramchandra Shukla दुःख के वर्ग में जो स्थान भय का है, आनंद वर्ग में वही स्थान उत्साह का है। भय में हम प्रस्तुत कठिन स्थिति के निश्चय से विशेष रूप में दुखी और कभी-कभी स्थिति से अपने को दूर रखने के लिए प्रयत्नवान् भी होते …

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भाव या मनोविकार (निबन्ध) : आचार्य रामचन्द्र शुक्ल

भाव या मनोविकार : आचार्य रामचन्द्र शुक्ल (निबन्ध) Bhav Ya Manovikar : Acharya Ramchandra Shukla (Nibandh) अनुभूति के द्वंद्व ही से प्राणी के जीवन का आरंभ होता है। उच्च प्राणी मनुष्य भी केवल एक जोड़ी अनुभूति लेकर इस संसार में आता है। बच्चे के छोटे से हृदय में पहले सुख और दु:ख की सामान्य अनुभूति …

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रस भरी वाणी गुरु नानक की : ठाकुर दलीप सिंह

रस भरी वाणी गुरु नानक की : ठाकुर दलीप सिंह Ras Bhari Vani Guru Nanak Ki : Thakur Dalip Singh (सतगुरु नानक वाणी में आये काव्य रसों की व्याख्या) रस भरे वाक्यों से ही कविता बनती है। इस लिए रसपूर्ण कविता कई प्रकार के रसों से युक्त होती है। विभिन्न भारतीय भाषाओं में ( उर्दू …

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नानक सायर एव कहित है : ठाकुर दलीप सिंह

नानक सायर एव कहित है : ठाकुर दलीप सिंह Nanak Sayar Ev Kehat Hai : Thakur Dalip Singh (सतगुरु नानक वाणी में वर्णित छंदों की व्याख्या) सतगुरु नानक देव जी ने अपने आप को शायर यानि कवि भी माना है। कवि रूप में गुरु जी ने कविता रची है। जिस में से ९४७ श्लोक / …

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साहित्य का उद्देश्य : मुंशी प्रेमचंद

साहित्य का उद्देश्य : मुंशी प्रेमचंद Sahitya Ka Uddeshya : Munshi Premchand (1936 में प्रगतिशील लेखक संघ के प्रथम अधिवेशन लखनऊ में प्रेमचंद द्वारा दिया गया अध्यक्षीय भाषण।) सज्जनो, यह सम्मेलन हमारे साहित्य के इतिहास में स्मरणीय घटना है। हमारे सम्मेलनों और अंजुमनों में अब तक आम तौर पर भाषा और उसके प्रचार पर ही …

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जीवन में साहित्य का स्थान : मुंशी प्रेमचंद

जीवन में साहित्य का स्थान : मुंशी प्रेमचंद Jeevan Mein Sahitya Ka Sthan : Munshi Premchand साहित्य का आधार जीवन है। इसी नींव पर साहित्य की दीवार खड़ी होती है। उसकी अटरियाँ, मीनार और गुम्बद बनते हैं लेकिन बुनियाद मिट्टी के नीचे दबी पड़ी है। उसे देखने को भी जी नहीं चाहेगा। जीवन परमात्मा की …

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साहित्य का आधार : प्रेमचन्द

साहित्य का आधार : प्रेमचन्द Sahitya Ka Aadhar : Munshi Premchand साहित्य का सम्बन्ध बुद्धि से उतना नही जितना भावों से है। बुद्धि के लिए दर्शन है, विज्ञान है, नीति है । भावो के लिए कविता है,उपन्यास है, गद्यकाव्य है। आलोचना भी साहित्य का एक अंग मानी जाती है, इसीलिए कि वह साहित्य को अपनी …

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कहानीकला (१) : प्रेमचन्द

कहानीकला (१) : प्रेमचन्द Kahanikala-1 : Munshi Premchand गल्प, आख्यायिका या छोटी कहानी लिखने की प्रथा प्राचीन काल से चली आती है। धर्म-ग्रन्थो मे जो दृष्टान्त भरे पडे है, वे छोटी कहा- नियाँ ही है, पर कितनी उच्च-कोटि की । महाभारत,उपनिषद्, बुद्ध जातक, बाइबिल, सभी सद्ग्रथों मे जन-शिक्षा का यही साधन उपयुक्त समझा गया है …

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हिंदी उर्दू की एकता : मुंशी प्रेमचंद

हिंदी उर्दू की एकता : मुंशी प्रेमचंद Hindi Urdu Ki Ekta : Munshi Premchand (आर्य समाज सम्मलेन के वार्षिक अवसर पर 23-24 अप्रैल 1936 को लाहौर में दिया गया मुंशी प्रेम चंद का भाषण ) सज्जनो, आर्य समाज ने इस सम्मलेन का नाम आर्य भाषा सम्मलेन शायद इसलिए रखा है की यह समाज के अंतर्गत …

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जीवन सार (आत्मकथा) : प्रेमचन्द

जीवन सार (आत्मकथा) : प्रेमचन्द Jeevan Saar (Autobiography) : Munshi Premchand १ मेरा जीवन सपाट, समतल मैदान है, जिसमें कहीं-कहीं गढ़े तो हैं, पर टीलों, पर्वतों, घने जंगलों, गहरी घाटियों और खण्डहरों का स्थान नहीं है। जो सज्जन पहाड़ों की सैर के शौकीन हैं, उन्हें तो यहाँ निराशा ही होगी। मेरा जन्म सम्वत् १९६७ में …

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