कार्तिक शुक्ल एकादशी-देव प्रबोधिनी/देव उत्थान एकादशी)

 Kartik Shukla Ekadashi-Dev Prabodhini/ Devautthan Ekadashi

भगवान श्री कृष्ण कहने लगे, ” हे धर्मराज! अब मैं तुम्हे देव प्रबोधिनी एकादशी का महात्म्य सुनाता हूँ| इस संबंध में एक समय में एक समय ब्रह्मा जी और देवर्षि नारद के मध्य हुए वार्तालाप को सुनो| पापों को हरने वाली, पुण्य और मुक्ति देने वाली एकादशी का महात्म्य सुनो | पृथ्वी पर भागीरथी, तीर्थों, नदी , समुद्रों का प्रभाव तभी तक है , जब तक की कार्तिक मास की देव प्रबोधिनी एकादशी नही आती है| यह महान पुण्य देने वाली है| मनुष्य को जो फल एक हज़ार आश्वमेध यज्ञों और एक सौ राजसूय यज्ञो से मिलता है, वही देव प्रबोधिनी एकादशी के व्रत के प्रभाव से मिलता है|

नारादजी ने ब्रह्मा जी से पूछा,” हे पिता श्री, देव प्रबोधिनी एकादशी को एक समय भोजन करने से, रात्रि को भोजन करने से तथा सारे दिन उपवास करने से क्या फल मिलता है? आप विस्तार पूर्वक मुझे बतायें|

ब्रह्माजी बोले,” हे पुत्र ! एक बार भोजन करने से एक जन्म के, रात्रि को भोजन करने से दो जन्म के तथा पूरा दिन उपवास करने से सात जन्मो के पाप नष्ट हो जाते हैं| जो वस्तु तीनो लोकों मे ना मिल सके और दिखाई ना दे सके वह देव प्रबोधिनी एकादशी से प्राप्त हो सकती है| जिसके हृदय में प्रबोधिनी एकादशी का व्रत करने की इच्छा उत्पन्न होती है, उसके सौ जन्मो के पाप भस्म हो जाते हैं| मेरु और मन्दराचल के समान भारी पाप भी नष्ट हो जाते हैं| इतना ही नही अनेक जन्मो में किए हुए पाप समूह क्षण भर में नष्ट हो जाते हैं| जैसे रूई के बड़े भारी ढेर को अग्नि की एक छोटी सी चिंगारी भस्म कर देती है, वैसे ही पूर्ण श्रद्धा, अटूट विश्वास और विधिपूर्वक किया गया थोड़ा सा पुण्य कर्म अनंत फल देता है|

वह पुण्य पर्वत के समान अटल हो जाता है| जो मनुष्य अपने स्वाभावानुसार इस प्रबोधिनी एकादशी  का विधि पूर्वक व्रत करते हैं उन्हे पूर्ण फल प्राप्त होता है| परंतु विधि रहित व्रत पूजन चाहे कितना ही किया जाये, पूर्ण फलदायी नही होता|मनुष्य को उसका कुछ भी फल नही मिलता| संध्या ना करने वाले , नास्तिक, वेद निंदक, धर्म शास्त्र को दूषित करने वाले , मूर्ख ,दुराचारी, दूसरे की स्त्री का अपहरण करने वाले, सदैव पाप कर्मो में लगे रहने वाले , धोखा देना वाले ब्राह्मण अथवा शूद्र , परस्त्री गमन करने वाले तथा ब्राह्मणी से भोग करने वाले – ये सब चंडाल के समान हैं| ये अपने समस्त पुण्य नष्ट करते हैं| जो विधवा अथवा सधवा ब्राह्मणी से भोग करते हैं, वे अपने कुल को भी नष्ट कर देते हैं| जो परस्त्री गमन करते हैं उनके संतान नही होती| तथा पूर्व जन्म के संचित सब अच्छे कर्म नष्ट हो जाते हैं| जो गुरु और पवित्र विद्वान ब्राह्मणों से अहंकार युक्त बातें करते हैं वे भी धन और संतान से हीन होते हैं| भ्रष्टाचार करने वाला, चंडाली से भोग करने वाला, दुष्ट की सेवा करने वाला और जो नीच मनुष्य की सेवा या संगति करते हैं, उन सभी के पाप प्रबोधिनी एकादशी के व्रत से नष्ट हो जाते हैं| जो इस व्रत को विधि पूर्वक करता है , उसके अनंत जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं|

भगवान की प्रसन्नता का यह मुख्य साधन है| इसके व्रत से मनुष्य को आत्मा का बोध होता है| मनुष्य जैसे ही अपने मन में देव प्रबोधिनी एकादशी के व्रत को करने का संकल्प मात्र करता है, उसके सौ जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं तथा जो मनुष्य प्रबोधिनी एकादशी को रात्रि जागरण करते हैं, उनकी बीती हुई तथा आने वाली दस हज़ार पीढ़ियाँ स्वर्ग में जाती हैं| नरक में अनेक दुखों से छूटकर पितृ प्रसन्नता के साथ सुसज्जित होकर विष्णुलोक में जाकर सुख भोगते हैं| ब्रह्म हत्या आदि महान पाप भी इस व्रत के प्रभाव से नष्ट हो जाते हैं| जो फल समस्त तीर्थों में स्नान करने, गौ , स्वर्ण और भूमि दान करने से होता है , वही फल इस एकादशी के श्रद्धा युक्त विधिपूर्वक किए गये व्रत, भजन कीर्तन और शास्त्र चिंतन में रात्रि जागरण करने से मिलता है|

हे नारद ! इस संसार में उसी मनुष्य का जीवन सफल है , जिसने देव प्रबोधिनी एकादशी का व्रत किया है| इस संसार में जितने भी तीर्थ हैं , उन सबके स्नान दान आदि का फल इस व्रत से मिलता है तथा सारे तीर्थ व्रत करने वाले के घर में रहते हैं|

अतः मनुष्य को भगवान की कृपा प्राप्त करने हेतु देव प्रबोधिनी एकादशी का व्रत अवश्य करना चाहिए| जो मनुष्य इस एकादशी के व्रत को करता है, वही ज्ञानी , तपस्वी , योगी तथा जितेन्द्रिय है और उसी को भोग तथा मोक्ष प्राप्त होता है|यह भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय, मोक्ष के द्वार को खोलने वाली तथा उसके तत्व का ज्ञान देने वाली है| इसके व्रत के प्रभाव से मनुष्य पुनः जन्म नही लेता| मन, कर्म , वचन तीनो प्रकार के पाप इस व्रत को करने से और रात्रि को जागरण करने से नष्ट हो जाते हैं| देव प्रबोधिनी एकादशी के दिन जो मनुष्य भगवान की प्रसन्नतार्थ  स्नान, दान, तप व यज्ञादि करते हैं, उन्हे अक्षय पुण्य मिलता है|

हरि प्रबोधिनी एकादशी के दिन भगवान की पूजा करने और व्रत करने से मनुष्य के बालपन, यौवन और वृद्धावस्था के समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं| इस व्रत के बिना अन्य व्रत व्यर्थ हैं | इस एकादशी को रात्रि जागरण का फल चंद्र , सूर्य ग्रहण के समय स्नान करने के फल से एक हज़ार गुना अधिक होता है| मनुष्य जन्म से लेकर जो पुण्य करता है वह पुण्य प्रबोधिनी एकादशी के पुण्य के सामने व्यर्थ है| जो मनुष्य प्रबोधिनी एकादशी का व्रत नही करते उनके सब पुण्य व्यर्थ हैं| अतः हे नारद ! तुमको भी विधिपूर्वक और  और अटूट विश्वास के साथ इस व्रत को करना चाहिए|

जो मनुष्य कार्तिक मास में धर्म परायण होकर अन्न नही खाते, उन्हे चंद्रायण व्रत का फल प्राप्त होता है| कार्तिक मास  में भगवान दान से उतने प्रसन्न नही होते जीतने की शास्त्रों की कथाओं के सुनने से होते है|कार्तिक मास में जो भगवान विष्णु की कथा को पढ़ते या सुनते हैं या सुनाते हैं उन्हे सौ गायों के दान का फल मिलता है|

अतः अन्य सब कामो को छोड़कर कार्तिक मास में भगवान विष्णु की भक्ति देने वाली कथा पढ़नी या सुननी चाहिए | जो मनुष्य कल्याण के लिए कार्तिक मास  में हरि कथा कहते या सुनते हैं , वे स्वयं अपना और कुटुम्ब का क्षण मात्र में उद्धार कर लेते हैं और सौ गौदान का फल प्राप्त पाते हैं| शास्त्रों की कथा कहने और सुनने से दस हज़ार यज्ञो का फल मिलता है| साथ ही उनके सब पाप भस्म हो जाते हैं| जो नियमपूर्वक हरि कथा सुनते हैं, वे एक हज़ार गौदान  का फ़ल पाते हैं| जो विष्णु भगवान की कथा सुनते हैं वे सातो द्वीपो सहित पृथ्वी के दान करने का फल पाते हैं| जो मनुष्य प्रभु विष्णु की भक्ति पूर्वक कथा सुनते हैं और कथा वाचक ब्राह्मण की यथा चित्त पूजा कर सामर्थ्य के अनुसार दक्षिणा देते हैं वे उत्तम लोक को जाते हैं|

ब्रह्मा जी की यह बात सुनकर नारद जी बोले,” हे भगवान! इस एकादशी के व्रत की क्या विधि है और कैसा व्रत करने से क्या फल मिलता है? यह भी विस्तार पूर्वक समझाइये|

ब्रह्मा जी बोले,” हे नारद! ब्रह्ममूहूर्त में जब दो घड़ी रात्रि रह जाए तब उठें , शौच आदि से निवृत्त हो कर दन्त धावनादि करें | उसक बाद नदी, तालाब, कुँआ, बावड़ी या घर में ही , जैसा संभव हो स्नान आदि करें | फिर भगवान की पूजा करके कथा सुने और एकादशी व्रत का नियम ग्रहण करें|

उस समय भगवान को साक्षी मानकर विनय करें- “हे भगवान ! आज मैं निराहार रहकर व्रत करूँगा और दूसरे दिन भोजन करूँगा| आप मेरी रक्षा कीजिए| “

इस प्रकार विनय कर भगवान की पूजा करनी चाहिए| तत्पश्चात श्रद्धा और भक्ति से व्रत करें तथा रात्रि को भगवान आगे नृत्य , गीत , कथा, बाजे आदि का उपक्रम करना चाहिए|

प्रबोधिनी एकादशी के दिन कृपणता त्याग कर बहुत से पुष्प, फल, अगर, धूप आदि से भगवान का पूजन करना चाहिए| शंख के जल से भगवान को अर्ध्य दें| इसका समस्त तीर्थों से करोड़ गुना फल मिलता है| जो कार्तिक मास में बिल्व पत्र से भगवान की पूजा करते हैं उन्हे अंत में मुक्ति मिलती है | जो मनुष्य अगस्त्य के पुष्प से भगवान का पूजन करते हैं, उनके आगे इंद्र भी हाथ जोड़ते हैं| तपस्या करके संतुष्ट होने पर भी हरि भगवान जो नही करते, वह अगस्त्य के पुष्पों से अलंकृत होने पर करते हैं|

कार्तिक मास में जो मनुष्य तुलसी से भगवान का पूजन करते हैं| उनके दस हज़ार जन्मो के समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं| तुलसी के दर्शन करने, स्पर्श करने, तुलसी की कथा कहने, स्तुति करने, तुलसी का पौधा लगाने , जल से सींचने और प्रतिदिन सेवा करने वाले हज़ार करोड़ युग पर्यंत विष्णुलोक में निवास करते हैं| कार्तिक मास  में जो तुलसी द्वारा भगवान विष्णु का पूजन करता है , उसके दस हज़ार जन्मो के पाप नष्ट हो जाते हैं| जो मनुष्य कार्तिक में वृंदा का दर्शन करते हैं वे एक हज़ार युग एक वैकुंठ में निवास करते हैं| जो मनुष्य तुलसी का पेड़ लगाते हैं उनके वंश में कोई निस्संतान नही होता | जो तुलसी की जड़ में जल चढ़ाते हैं , उनका वंश सदा बढ़ता रहता है | जिस घर में तुलसी का पेड़ हो उसमे सर्प देवता निवास करते हैं| यमराज के दूत वहाँ स्वप्न में भी नही विचरते|

जो तुलसी के पास श्रद्धा से दीप जलाते हैं, उनके हृदय में दिव्य चक्षु का प्रकाश होता है| जो शालिग्राम के चरणामृत में तुलसी मिलकर पीते हैं, उनके निकट अकाल मृत्यु नही आती| उनकी सारी व्याधियाँ नष्ट हो जाती हैं, पुनर्जन्म प्राप्त नही होता|

हे मुनि| रोपी हुई तुलसी जितनी जड़ों का विस्तार करती है, उतने ही तुलसी रोपण करने वाले के पुण्यों का विस्तार होता है| जिस मनुष्य की रोपण की हुई तुलसी की जितनी शाखा, प्रशाखा , बीज और फल पृथ्वी में बढ़ते हैं, उसके उतने ही बीते हुए कुल तथा आने वाले कुल दो हज़ार कल्प तक विष्णुलोक में निवास करते हैं| ऐसी पतित पावन तुलसी का पूजन ‘ ऊँ श्री वृंदाय नमः ‘ मंत्र से करना चाहिए|

समस्त मनोवांच्छाओं को पूरा करने वाले भगवान  कदंब पुष्प को देखकर अत्यंत प्रसन्न होते हैं| अतः जो कदंब के पुष्पों से भगवान श्री हरि की पूजा करते हैं, वे कभी यमराज को नही देखते| जो गुलाब के पुष्पों से भगवान की पूजा करते हैं, उन्हे मुक्ति मिलती है तथा अनंत पुण्य मिलता है| जो बकुल और अशोक के पुष्पों से भगवान का पूजन करते हैं, वे सूर्य चंद्रमा के रहते तक किसी प्रकार का शोक नही पाते| जो मनुष्य सफेद ये लाल कनेर के फूलों से भगवान का पूजन करते हैं उन पर भी भगवान अत्यंत प्रसन्न रहते हैं| जो भगवान पर आम की मंजरी चढ़ाते हैं, वे करोड़ों गौदान का फल पाते हैं| जो मनुष्य दूब के अंकुरों से भगवान पूजा करते हैं, वे पूजा के फल से सौ गुना फल पाते हैं|

जो भगवान की शमी पत्र से पूजा करते हैं, वे महाघोर यमराज के मार्ग को सरलता से पार कर लेते हैं| जो मनुष्य चंपा के फूलों से विष्णु भगवान की पूजा करते हैं वे आवागमन के चक्र से छूट जाते हैं| जो मनुष्य केतकी के पुष्प भगवान पर चढ़ाते हैं उनके करोड़ों जन्मो के पाप नष्ट हो जाते हैं| जो मनुष्य पीले और रक्तवर्ण के कमल के पुष्पों से भगवान के पूजन करते हैं, उन्हे श्वेत द्वीप में स्थान मिलता है|

इस प्रकार रात्रि में भगवान का पूजन कर प्रातः काल होने पर नदी , तालाब आदि के शुद्ध जल में स्नान , जप तथा प्रातः काल के कर्म कर घर लौट विधिपूर्वक भगवान केशव का पूजन करें| व्रत की समाप्ति पर विद्वान ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए और दक्षिणा देकर गुरु का पूजन करना चाहिए | ब्राह्मणो को भी दक्षिणा दें|

हे राजन! रात्रि में भोजन करने वाले मनुष्य ब्राह्मणो को भोजन करायें और स्वर्ण सहित बैल का दान दें| जो मनुष्य यात्रा स्नान करते हैं उन्हे दही और शहद का दान कारण चाहिए| जो मनुष्य माँसाहारी नही हैं वे गौ का दान करें | आँवले से स्नान करने वाले मनुष्य को दही और शहद का दान करना चाहिए | जो मनुष्य फलों का त्याग करे वह उन्ही फलों का दान करे| तेल छोड़ने पर घी और घी छोड़ने पर दूध, अन्न छोड़ने पर चावल का दान करना चाहिए| जो मनुष्य इस व्रत में भूमि शयन करते हैं, उनको शय्या दान सब सामग्री सहित देनी चाहिए| जो मनुष्य मौन व्रत धारण करे उसे ब्राह्मण और ब्राह्मणी को घृत तथा मिठाई का भोजन कराना चाहिए और उसे स्वर्ण सहित तिल का दान करना चाहिए | जो मनुष्य बाल रखते हैं उन्हे दर्पण का दान करना चाहिए|

जो मनुष्य कार्तिक मास में जूता नही पहनते उन्हे एक जोड़ा जूता दान करना चाहिए| जो मनुष्य कार्तिक मास में नमक का त्याग करते हैं, उन्हे शर्करा दान करनी चाहिए| जो मनुष्य कार्तिक शुक्ल एकादशी से पुण्या तक देव स्थानो में दीपक जलाते हैं तथा नियम लेते हैं , उन्हे व्रत की समाप्ति पर ताम्र अथवा स्वर्ण के दिए को घृत और बत्ती रखकर विष्णु भक्त ब्राह्मण को दान देना चाहिए| यदि यह संभव ना हो तो ब्राह्मणों का सत्कार करें|

एकांत व्रत में आठ कलश वस्त्र और स्वर्ण से अलंकृत करके दान करना चाहिए | यदि यह भी ना हो सके तो इसके आभाव में ब्राह्मणों का सत्कार सब व्रतों की सिद्धि देने वाल कहा गया है|

इस प्रकार ब्राह्मणों को विदा करें| इसके पश्चात स्वयं भी भोजन करें | चतुर्मास  में जिन वस्तुओं को छोड़ा हो उन्हे इस दिन से पुनः ग्रहण करना चाहिए|

हे राजन! जो मनुष्य इस प्रकार चतुर्मास व्रत को निर्विघ्न समाप्त करते हैं उन्हे फिर दुबारा जन्म नही मिलता| वे भगवान विष्णु की कृपा के अधिकारी हो जाते हैं| जिन मनुष्यों का व्रत खंडित हो जाता है, वे कष्ट पाते हैं और नरक को जाते हैं| व्रत भ्रष्ट हो जाने पर व्रत करने वाला शारीरिक कष्ट पाता है|

श्री कृष्ण बोले,” हे राजन! चतुर्मास की श्रद्धा सहित समाप्ति पर गृहस्थ और सन्यासी दोनो अक्षय फल के अधिकारी होते हैं| चतुर्मास मनुष्य को भगवान विष्णु की भक्ति के लिए सुअवसर है|भगवान विष्णु को उठाने के लिए साधक को बड़ी श्रद्धा और विश्वास के साथ प्रार्थना करनी चाहिए| यह पुण्यमयी एकादशी का व्रत करने वाले अपना जीवन धन्य मानते है|

इस कथा को सुनने और पढ़ने से सौ गौदान का फल प्राप्त होता है|

भगवान श्री कृष्ण ने कहा,” हे राजन, जो कुछ तुमने पूछा था, वह सब मैने बताया|”

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