गंगा जल का प्यासा प्रेत

गंगा जल और प्रेत की प्यास – बात पुराने समय की है गंगा , यमुना , सरस्वती के पावन संगम की नगरी, प्रयागराज से लगभग 5 कोस की दूरी पर एक ब्राह्मण रहता था। (पुराने समय में दूरी के लिए कोस शब्द का ही प्रयोग होता था अंग्रेजों के आ जाने के बाद किलोमीटर मीट्रिक प्रणाली का उपयोग होने लगा। 1 कोस लगभग 1.8 किलोमीटर होता है )।

ब्राह्मण देवता का एक नियम था कि प्रत्येक संक्रांति के दिन वह स्नान करने के लिए प्रयागराज त्रिवेणी संगम को जाया करते थे और माघ मास मकर संक्रांति (खिचड़ी ) के दिन तो वह सपरिवार संगम पर जाते थे गंगा स्नान के लिए। संक्रांति हर महीने तब आती जब भगवान सूर्य एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं। इस प्रकार मास परिवर्तन होता है। यह दिन बड़ा ही पवित्र माना जाता है और इस दिन स्नान करने पर विशेष पुण्य प्राप्त होता है।

प्रयागराज त्रिवेणी संगम , तीन वेणियों अर्थात तीन नदियों गंगा , यमुना , सरस्वती का मिलन स्थल है। इस परम पवित्र संयोग और ब्रह्मा जी के द्वारा विशिष्ट यज्ञों के कारण प्रयाग को तीर्थराज कि उपाधि प्राप्त है। अतः त्रिवेणी संगम पर संक्रांति के दिन स्नान और गंगा जल पान करना परम पुण्य फलदायी होता है।

इसी प्रकार नियम पालन करते करते अब ब्राह्मण देवता बूढ़े हो चले थे। चलने फिरने में अशक्त होने लगे। तब एक बार उन्होंने अपने पुत्र को बुलाकर कहा ,” हे पुत्र ! तुम प्रयागराज जाओ और स्वयं स्नान करके त्रिवेणी संगम के जल से घड़ा भर के लाना और संक्रांति के पुण्यकाल होने से पहले मुझे भी स्नान कर देना। इस कार्य में कतिपय कोई त्रुटि न करना।

पिता की आज्ञा का पालन करने के लिए ब्रह्मण पुत्र प्रातः तड़के ही संगम के लिए चल पड़ा। त्रिवेणी संगम पर जहां तीनो नदियां मिलती हैं वहां स्वयं स्नान करके पिता के लिए संगम से जल भर के वापस चल पड़ा। वापसी में उसे रास्ते में एक प्रेत मिला। आजकल तो प्रायः सभी जगहों पर निर्माण कार्य हो गया है पर उस समय में आबादी कम थी और जंगल और सुनसान स्थान बहुत हुआ करते थे।

प्रेत प्यास के करण व्याकुल हो रहा था। शायद उसकी मृत्यु किन्ही विकट परिस्थितियों में हुआ था। प्रेत योनि में भूख प्यास बहुत लगती है पर शरीर न होने के कारण उनकी तृप्ति नहीं हो पाती। यह प्रेत गंगा जल की प्राप्ति के लिए इच्छुक था।
प्रेत बालक का रास्ता रोक कर खड़ा गया।

लड़के ने कहा ,” रास्ता रोक कर क्यों खड़े हो ? मुझे रास्ता दो।

प्रेत,” तुम कहाँ से आ रहे हो ? और तुम्हारे इस घड़े में क्या है ?

ब्राह्मण पुत्र, ” गंगा जल है। “
प्रेत,” हे बालक मुझे यह गंगा जल पिला दो। मैं प्रेत योनि में कई वर्षों से फंसा हुआ हूँ। मैं इसी इच्छा से यहाँ से पड़ा हूँ कि कोई दयालु मुझे गंगा जल पिला दे तो मैं इस योनि से मुक्त हो जाऊं क्योंकि मैंने गंगाजल का प्रभाव प्रत्यक्ष देखा है।

ब्राह्मण पुत्र , “क्या प्रभाव देखा है?”

प्रेत ,” मैं तुम्हे एक घटना सुनाता हूँ। कुछ समय पहले एक विद्वान ब्राह्मण था। उसने शास्त्रार्थ करके बहुतों को पराजित किया था और अपरिमित संपत्ति अर्जित कर रखी थी। ऐसे ही एक ब्रह्मवेत्ता ब्राह्मण के साथ विरोध हो जाने पर इसने उसे क्रोधवश मार दिया। इस कुत्सित ब्रह्महत्या पाप के कारण वह ब्रह्मराक्षस हो गया और हमारे साथ ८ वर्षों तक रहा। ८ वर्षों के पश्चात उसके पुत्र ने उसकी अस्थियां हरिद्वार के समीप कनखल स्थित गंगा में प्रवाहित कर प्रार्थना की कि , ” हे पतितपावनी माता गंगा ! मेरे दिवंगत पिता कि आत्मा को सद्गति प्रदान करें। ” उसके इस प्रकार प्रार्थना करते ही वह ब्राह्मण तत्क्षण ब्रह्मराक्षस योनि से मुक्त हो गया। उसी ने अपनी मुक्ति के समय मुझे गंगा जल का माहात्म्य बताया था। प्रत्यक्ष को प्रमाण की क्या आवश्यकता? मैंने स्वयं गंगा जल का प्रभाव देखा था। उस ब्रह्मराक्षस को मुक्त हुआ देखकर गंगाजल पान की इच्छा से ही यहाँ पड़ा हूँ। अतः तुम मुझे भी गंगा जल पर पिला दो , तुम्हे महान पुण्य की प्राप्ति होगी।”

ब्राह्मण पुत्र , ” मैं इस समय पिता के नियम पालन के लिए निकला हूँ। उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं है और उनका संक्रांति के स्नान का नियम है। यदि मैं यह गंगा जल तुम्हे पिला दिया तो वापस संगम तक जाने और जल भर के लाने तक संक्रांति का पुण्यकाल व्यतीत हो जायेगा और मेरे पिता का नियम भंग हो जायेगा। अतः मैं इस समय आपका उपकार करने में असमर्थ हूँ।

प्रेत बोला ,” कुछ ऐसा उपाय करों जिससे तुम्हारे पिता का नियम भी भंग न हो और मेरी सद्गति भी हो जाय। ऐसा करो कि पहले मुझे जल पिला दो फिर नेत्र बंद करने पर मैं तुम्हे गंगा तट पर पहुंचा के पलक झपकते ही मैं पुनः तुम्हे तुम्हारे घर पहुंचा दूंगा। “

ब्राह्मण पुत्र को प्रेत कि प्रार्थना तर्कसंगत प्रतीत हुयी और वह सहमत हो गया। उसने प्रेत कि दुर्दशा पर तरस करके उसे जल पिला दिया।

प्रेत तृप्त हुआ और बोला ,” अब अपने नेत्र बंद करो और अपने को गंगा जल सहित पुनः अपने पिता के पास पहुंचा हुआ पाओ।

बालक ने नेत्र बंद किया और आँख खोलते ही देखा कि वह गंगा जल लिए हुए अपने पिता के पास पहुंच गया है।

श्री गंगा जी महात्म्य के बारे में भगवन व्यासजी पद्म पुराण में वर्णित करते हैं कि ,”अविलंब सद्गति का उपाय सोचने वाले सभी स्त्री-पुरुषों के लिए गंगाजी ही एक ऐसा तीर्थ हैं, जिनके दर्शनमात्र से सारे पाप नष्ट हो जाते हैं।”

भगवान शिवजी नारदजी से कहते हैं, “समुद्रसहित पृथ्वी का दान करने से मनीषी पुरुष जो फल पाते हैं, वही फल गंगा-स्नान करनेवाले को सहज में प्राप्त हो जाता है।”

राजा भगीरथ ने भगवान शिव जी की आराधना करके गंगाजी को स्वर्ग से पृथ्वी पर उतारा था। जिस दिन माता गंगा स्वर्ग से पृथ्वी पर उतरी थीं वह दिन गंगा दशहरा के नाम से जाना जाता है।v

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