बृजलाल! हम तो भूखे रह गये-बाबा नीम करोली कथा

कानपुर के एक बड़े उद्योपति की माता जी के आग्रह करने पर एक दिन बाबा जी ड्राईवर बृजलाल के साथ माता जी की कोठी पर पहूँच गये।

मारवाड़ी उद्योपति के घर सोने चाँदी के पात्रों में तरह तरह के व्यंजन देख कर बाबा जी के विरागी मन विचलित हो गया और गृह स्वामिनी के के मन में ऐसे पात्रों में भोजन परोसते शायद कुछ अंहकार का भाव आ गया।

कुछ ही देर में बाबा जी ने एक पात्र में ज़रा ज़रा सा सब व्यंजनों को मिलाना शुरू कर दिया , माता जी कहता रह गयी ” अरे महाराजजी , ये तो खट्टा है, ये तो मीठा है, ये नमकीन है।” पर महाराज जी ने सभी व्यंजनों को घोल मोल बना दिया और ज़रा सा चखा।

माता जी अपने व्यंजनों की ये हालत देखकर कुछ परेशान हो गई।

कुछ देर बाद बाबा जी वापिस चल पड़े और कुछ दूर जाकर ड्राईवर से बोले , ” बृजलाल! हम तो भूखे रह गये। चल तेरे घर चलते है।”

ड्राईवर हैरान कि इतना बढि़या खाना न खाकर बाबा मेरे घर साधारण खाना खायेंगे। पर वे क्या समझता कि बाबा क्यूँ भूखे रह गया । ड्राईवर के घर पहँच कर बाबा जी ने रोटी खाकर अपनी तृप्ति की ।

जय श्री बाबा नीम करोली

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