लज्जा : आचार्य चतुरसेन शास्त्री

लज्जा : आचार्य चतुरसेन शास्त्री Lajja : Acharya Chatursen Shastri

हाय! हाय! ना, यह मुझसे न होगा! तुम बीबी जी! बड़ी बुरी हो, तुम्हीं न जाओ। वाह! नहीं, तुम मुझे तंग मत करो। मैं तुम्हारे हाथ जोड़ँ, पैरों पडू, देखो-हाहा खाऊँ, बस इससे तो हद है? अच्छा तुम्हे क्या पड़ी है? तुम जाओ। ठहरो मैं भी तुम्हारे साथ चलती हूँ। ना, वहाँ तो नहीं, भला कुछ बात है, इतनी बड़ी हो गई? समझ नहीं आई। कोई तो है नहीं, अकेले हैं। कोई क्या कहेगा? तुम्हे कहते लाज भी नहीं आती। हँसती क्यों हो? देखो यह हँसी अच्छी नहीं लगती। बस कह दिया है-मैं रूठ जाऊँगी।

एक बार सुनी, दो बार सुनी। तुम तो हाथ धोकर पीछे ही पड़ गई, अच्छा जाओ आज मैं खाऊँगी नहीं, मुझे भूख नहीं है, मेरे सिरमें दर्द है-पेट दुखता है। अपनी ही कहे जाती हो, किसी के दुःख की भी खबर है? यह लो-हँसी ही हँसी। इतना क्यों हँसती हो? हटो, मैं नहीं बोलती। वाह!

मेरी अच्छी बीबी! बड़ी लाड़ो बीबी जी! देखो, भला कही ऐसा भी होता है। राम राम। मै तो लाज से गड़ी जाती हूँ। तुम्हे तो हया न लिहाज। देखो, हाथ जोड़ूँ, धीरे धीरे तो बोलो―हाय! धीरे धीरे। अरे नही, गुदगुदी क्यों करती हो? नोंचो मत जी! तुम्हे हो क्या गया है? कोई सुन लेगा। धकेलो मत, देखो मेरे लग गया, पैर का अँगूठा कुचल गया। हाय मैया! बड़ी निर्दयी हो, मैं तुम्हें ऐसा न जानती थी। अम्मा जी के जाने से तुम्हारी बन आई। अब मालूम हुआ, भोले चेहरे मे ये गुन छिपे पड़े थे! डर क्या है? दिन निकलने दो। सब समझ लूँँगी। आई चलकर धक्का देने वाली। वाह जी! हटो अब तुम मुझे मत छेड़ना, हायरे! मेरा अँगूठा।

न मानोगी? बड़ी पक्के दीदे की हो। अच्छा, नहीं जाते, नहीं जाते, एक से लाख तक। कह दिया, करलो क्या करना है। आज सब बदले ले लेना, जन्म जन्म के बैर चुकाना। आने दो अम्मा जी को। तुम्हारे यह कैसे लच्छन हैं जी? ना, हमें यह छिछोरपन अच्छा नहीं लगता। राजी राजी समझती ही नहीं। कुछ बालक हो, वाह जी वाह, सुसराल मे जाकर यही लच्छन सीख आई हो। हटो! मै तुमसे नहीं बोलती। अच्छा, आखिर मतलब भी कहो? काम क्या है? मैं क्यों अनहोनी करूंँ? पानी तुम दे आओ, बुद्धो को भेज दो–मुझ पर ही दण्ड क्यों?

हद हो गई। यह कैसी हठ है? न जाऊँगी-न जाऊँगी-न जाऊँगी, बस-कितनी बार कहूँ? लो मैं रसोई मे जाये बैठती हूँ, नाक में दम कर दिया, चैन नहीं लेने देतीं।

हाय करम! भगवान् ने कैसे दुःख दिये। देखो मेरा जी अच्छा नहीं है। नहीं तो मैं इतना हठ न करती, तुम्हारी बात क्या कभी टाली है? आओ चलो तुम्हारी कोठरी मे चलकर मजे से सोवें। खूब गर्माई रहेगी।

क्यों? इसमे क्या हर्ज है? इसी तरह क्या रोज नहीं सोते थे? आज ही मक्खी ने छीक दिया? चलो, नखरे मत करो। अच्छा देखो आज तुम मेरी बात मानलो–कल जैसा तुम कहोगी मान लूँगी। बस अब तो राजी! चलो उठो उठो! अब नखरे मत करो। मेरी बीबी जी बड़ी अच्छी है।

हे भगवान्! हे जगदीश! हे परब्रह्म! यह आज कैसा संकट आया। हे मुकुन्द मुरारी! किसी तरह लाज बचाओ। बुरी फॅसी। हाय करम! अच्छा चलो तुम भी साथ चलो, तुम्हे मैं छोड़ने वाली नहीं हूँ। चलो। अब नानी क्यों मरती है? ‘भुस मे आग लगा जमालो दूर खड़ी’, तुम्हारी वह मसल है। मैं तुम्हे छोड़ने वाली नहीं। तुमने बहुत मेरा नाक में दम किया है। ना, कितना ही मचलो छोडूगी नहीं। बनाओ बहाने बनाओ। अब मेरी बारी है।

हर बात मे तुम्हारी ही चलेगी? मैं कुछ हूँ ही नहीं। तो तुम्हे बाघ खा लेगे? जाने दो फिर, मै भी नहीं जाती। हरे राम! इस दु:ख से तो मौत ही अच्छी। अच्छा। पर देखो बाहर खड़ी रहना। देखो तुम्हे मेरी कसम! हाय! हाय! यह क्या कर रही हो। अच्छा आगे आगे चलो! अरे! धीरे धीरे। घोड़ी सी क्यों दौड़ती हो? बड़ी नटखट हो। देखो तुम्हारे पैरों पड़ूं खड़ी रहना। नहीं तो याद रखना मुझसे बुरा कोई नही। भला तुम्हे मेरी क़सम।

Leave a Comment