पूतना किसका अवतार थी / पूतना का पूर्वजन्म क्या था?

पूतना पूर्वजन्म में परम दानवीर दैत्यराज बलि की पुत्री थी। एक राजकुमारी के रूप में पूतना का नाम पिछले जन्म में रत्नमाला था।

पूतना के पूर्वजन्म की कथा

एक कथा के अनुसार त्रेता युग मे जब राजा बलि ने सभी दैत्यों को परास्त कर स्वर्ग पर अपना अधिकार जमा लिया और सभी देवता बलि के डर से कन्दराओं में छुप कर रहने लगे,तब सबकी विनती पर भगवान श्री विष्णु वामन रूप में पृथ्वी पर अवतार लिया।

एक दिन वामन भगवान राजा बलि के यहां पधारे, भगवान वामन की सुंदर और मनमोहक छवि देखकर रत्नमाला के मन में ममत्व जाग उठा। भगवान वामन को देखकर वह मन ही मन सोचने लगी कि काश मेरा भी ऐसा ही पुत्र हो ताकि में उसे हृदय से लगाकर अपना दुग्धपान कराती।
 भगवान ने उसकी मन की इच्छा को जान लिया और तथास्तु कहा। किन्तु इसके बाद भगवान वामन ने राजा बलि का अहंकार दूर करने के लिए तीन पग में भूमि नाप दी। राजा समझ गए और अपनी गलती का उन्हे अहसास हो गया। राजा ने वामनदेव से क्षमा मांगी।

 लेकिन इस घटना को रत्नमाला देख रही थीं। रत्नमाला को प्रतीत हुआ कि उसके पिता के साथ छल हुआ है और उनका घोर अपमान हुआ है। इससे वह बुरी तरह से क्रोधित हो उठी। उसने मन ही मन भगवान को बुरा कहना आरंभ कर दिया उसने कहा कि अगर ऐसा मेरा पुत्र होता तो मैं इसे विष दे देती। भगवान ने उसके इस भाव को भी जानकर तथास्तु कह दिया।

द्वापर में यही राजा बलि की बेटी रत्नमाला भगवान द्वारा तथास्तु कहने के कारण पूतना राक्षसी के रूप में उसने जन्म लिया।

पूतना कौन थी?

पूतना एक मंत्रसिद्ध राक्षसी थी जो आकाशगमन की विद्या जानती थी और मथुरा के राजा कंस के कहने पर बालक भगवान श्री कृष्ण को मारने के लिए सुन्दर स्त्री का वेश बनके आयी थी। पुराणों के अनुसार पूतना के कंस से सम्बन्ध के बारे में विभिन्न वर्णन मिलते हैं। इनका उल्लेख नीचे किया गया है :

  1. पूतना कैतवी नामक राक्षसी की बेटी थी और कंस की पत्नी की दासी थी। उसकी एक छोटी बहन थी जिसका नाम वृकोदरी था। (आदि पर्व, अध्याय 18)।
  2. पूतना कंस की धात्री (पालक-माता) थी। उसने एक पक्षी के रूप में गोकुल में प्रवेश किया। (हरिवंश, अध्याय 2, श्लोक 6)।
  3. पूतना कंस की बहन और घटोदर की पत्नी थी। (ब्रह्मवैवर्त पुराण)।

पूतना का वध किस दिन हुआ था ?

पूतना के रूप में उस राक्षसी ने भगवान विष्णु के ही अवतार श्री कृष्ण को अपनी छाती पर विष लगाकर उनको छल से अपना दूध पिलाकर मरना चाहा। पूतना को बालक रूप में कृष्ण भगवान ने पूतना का विष भरा दूध पीते हुए उसके प्राणों को भी हर लिया था। जिस दिन पूतना का वध हुआ वह दिन फाल्गुन पूर्णिमा का दिन था।

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