वृद्ध बंगाली बाबा को प्रभु का दर्शन

वृद्ध बंगाली बाबा को प्रभु का दर्शन

एक वृद्ध भक्त बंगाली सज्जन(Bhakt Bengali Baba) जीवन के चौथेपन में तीर्थ यात्रा पर निकले। कलकत्ता से चलकर वह घूमते घूमते वह भगवान कृष्ण-श्री बांके बिहारी जी (Shri Banke Bihari) के दर्शन के लिए वृन्दावन(Vrindavan) आये। श्री बिहारी जी के दर्शन करने के बाद ऐसा प्रगाढ़ प्रेम भाव उमड़ा कि प्रभु से से मिलने के बाद यहीं के होके रह गए।

प्रभु से दरबार से सम्बन्ध जोड़ने के लिए उन्होंने मंदिर के गोस्वामी जी से प्रभु कि कोई सेवा मांगी। बंगाली सज्जन के अति वृद्ध अवस्था को देखते हुए गोस्वामी जी ने मना किया कहा कि ,” बाबा इस उम्र में आप क्या सेवा कर पाएंगे? आप रहने दें और शरीर को विश्राम दें। “

लेकिन भक्त बाबा नहीं माने और बार बार विनती करते रहे। जब उन्होंने बहुत विनती की तो गोस्वामी जी ने मंदिर के चौखट पर रात का पहरा देने की सेवा लगा दी। कहा कि बाबा ध्यान रखना कि मंदिर में कोई चोर उचक्का न प्रवेश कर पाए।

भक्त बाबा प्रभु की सेवा पाकर बड़े प्रसन्न हुए। बड़े प्रेमभाव से उन्होंने वह सेवा स्वीकार की। रात्रि का समय भगवान की सेवा में बाबा पहुँच जाते। सबके चले जाने के बाद एकांत मिलता। बाबा प्रभु का स्मरण करते हुए भजन करते और आनंद से प्रभु की लीलाओं का स्मरण करते हुए श्री बिहारी जी की पहरेदारी करते । इस प्रकार उनको सेवा करते कई वर्ष बीत गए।

एक दिन प्रभु की कृपा बरसने का समय आया। भगवान की लीला (Leela) हुयी। एक रात्रि को बाबा ने देखते क्या हैं कि आधी रात को मंदिर से निकल कर बिहारी जी (Shri Banke Bihari) सेवाकुंज (Sevakunj) की ओर चल दिए। प्रभु के पीछे- पीछे बाबा भी चल दिए। सेवाकुंज के निकट पहुंचते पहुंचते सुकोमल अंगो वाले बालक बिहारी जी थक गए। बाबा को लक्ष्य करते हुए श्याम सुन्दर ने मुड़ के देखा। भक्त बाबा पीछे ही चले आ रहे थे। उन्होंने बाबा से कहा ,” बाबा मैं बहुत थक गया हूँ। आप मुझे सेवाकुंज तक तो पहुंचा दो। “

बूढ़े बाबा (Bhakt Bengali Baba) बालक श्यामसुंदर को कंधे पर बैठकर सेवाकुंज की चौखट तक ले गए। वहां पहुँच कर भगवान ने कहा ,” बाबा मुझे यहीं उतार दीजिये और प्रतीक्षा कीजिये। “

बाबा के मन में कुतूहल जागृत हुआ कि प्रभु इतनी रात गए सेवाकुंज(Sevakunj) में क्यों आये हैं ? यह जानने की इच्छा से उह्नोने एक आले (झिर्री) से झांककर देखा तो उन्हें भीतर दिव्य प्रकाश गोचर हुआ। उस दिव्य आलोक में उन्होंने देखा कि प्रभु श्री किशोरी जी के संग रास प्रसंग रचा रहे थे। दिव्य प्रेम की छटा में बाबा ऐसे रम गए कि बेसुध होकर गिर पड़े। उनकी समाधि लग गयी। सुबह होने पर भगवान ने बाबा को पुनः पुकारा ,” बाबा मुझे मंदिर तक नहीं ले जाओगे ?”

आनंद विभोर बाबा कि आँखें खुली और मगन मन से पुनः मुरलीधर को अपने कंधे पर बिठाकर ले चले। ब्रह्म मुहूर्त से पूर्व उन्होंने बिहारी जी को मंदिर पहुंचाया और गोस्वामी जी से सारा वृतांत कहा।

गोस्वामी जी जब प्रातः भगवान को मंगला आरती के लिए उठाने लगे तो बाबा ने उनके पाँव पकड़ लिए और कहने लगे ,” मेरे बाल गोविन्द अभी तो सोये हैं , उन्हें थोड़ा तो विश्राम कर लेने दीजिये।

कहते हैं उस दिन से वृन्दावन (Vrindavan) में साल में जन्माष्टमी को छोड़कर कभी बांके बिहारी जी(Shri Banke Bihari ji) की प्रातः मंगला आरती नहीं हुयी और उसी दिन प्रभु ने उन भक्त बाबा (Old Devotee Bengali Baba) को अपने धाम बुला लिया।

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