Basant Panchami 2024 | नॉनस्टॉप सरस्वती माता भजन | Nonstop Sarswati Mata Bhajan | Saraswati Bhajan

Basant Panchami 2024 | नॉनस्टॉप सरस्वती माता भजन | Nonstop Sarswati Mata Bhajan | Saraswati Bhajan Bhakti Dhun


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भजन [संगीत] ओम सरस्वत्य नमो नमः ओम वर प्रदाय नमो नमः ओम महा भद्राय नमो नमः ओम महा माया नमो नमः प्रेम से बोलिए सरस्वती माता की जय भक्तों सरस्वती मां ज्ञान की देवी है इन्हें साहित्य कला और स्व की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है शुक्रवार को अन्य शक्ति

स्वरूपों के साथ मां सरस्वती की भी पूजा अर्चना की जाती है कहते हैं स्वयं विष्णु अवतार श्री कृष्ण जी ने सर्वप्रथम मां सरस्वती की पूजा अर्चना की थी इनकी उपासना करने से कालिदास जैसे मूर्ख भी विद्वान बन गए माघ शुक्ल पंचमी यानी वसंत पंचमी को इनकी विशेष रूप से पूजन की परंपरा है

भक्तो मां सरस्वती की अनेक प्रचलित कथाएं हैं जिनमें से कुछ पावन कथाओं को आज हम प्रस्तुत करेंगे इन कथाओं के श्रवण से असीम सुख व शांति की अनुभूति होती है तो आइए भक्तों सुनते हैं मां सरस्वती की कुछ प्रस कथाएं करते वंदन प्रथम पूज की जो है

गौरी पुत्र गणेश सिद्धि विनायक हम भक्तों पर रखना अपनी कृपा विशेष फिर सरस्वती का कर के वंदन करते हैं हम महिमा मंडल ज्ञान के देवी सुर की सरता तूही पावन तूही पविता मां का आसन है हसानंद निरंजना मां है चतुरानन जो भी करता मां का ध्यान उसको

मिलता विद्या दन सरस्वती मां की कथाएं उनमें से हम कुछ को सुनाए सुनना भक्तों ध्यान लगाकर हंस वाहिनी सबप कृपा करर भक्तों सृष्टि के प्रारंभिक काल में भगवान विष्णु की आज्ञा से ब्रह्मा जी ने मनुष्य पशु पक्षी पेड़ पौधे पहाड़ नदी झड़ने आदि समस्त चराचर जगत की रचना की परंतु वह अपनी

सर्जना से संतुष्ट नहीं थे तब उन्होंने श्री हरि की आज्ञा पाकर अपने कमंडल से थोड़ा सा जल हाथ में लेकर पृथ्वी पर छिड़क दिया जिससे पृथ्वी कंपित होने लगी और एक अद्भुत शक्ति स्वरूप चतुर्भुजी सुंदर मनमोहक स्त्री प्रकट हुए जिसके एक हाथ में वीणा एवं दूसरा हाथ वर

मुद्रा में था वही अन्य दोनों हाथों में पुस्तक व माला थी जब इस देवी ने वीणा का मधुर नाद किया तो संसार के समस्त जीव जंतुओं को वाणी प्राप्त हुई जब श्री विष्णु की आज्ञा पाया त ब्रह्मा ने सृष्टि बनाया नदी झड़ने और पेड़ पहार सृजित किया है धरा शृंगार पर यह

धरा थी बिल्कुल निर्ज तब ब्रह्माने रचा नारिन श्रृष्टि रच के ब्रह्म पछताए यह सृष्टि उन्हें जरा न भाए सब कुछ शांति व सूना लागे अब क्या करें वो इससे आगे तब ब्रह्माने जलो को लेकर छिड़क दिया है सुत धरा पर प्रकट हुई नारी एक सुंदर हस्ते

वीणा दुज मुद्रा छेड़ा है वीणा का जो तान मिला है सबको ध्वनि का ज्ञान भक्तों ब्रह्मा जी अपनी कृति से बहुत प्रसन्न हुए और उनकी बनाई गई सृष्टि में जान आ गई पंछी चहा लगे करने लगे नदिया झड़ने कलकल करने लगे समस्त जीवों में वाणी का संचार हो गया

पूरी पृथ्वी मानो मुस्कुराने लगी देवी सरस्वती ने ब्रह्मा जी की स्तुति वंदना की ब्रह्मा जी उनकी स्तुति से अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्हें सत्य लोक में परम पद लिया इस प्रकार भक्तों मां सरस्वती का आविर्भाव हुआ ब्रह्म विद्या एवं संगीत क्षेत्र के अधिष्ठाता के रूप में नत शिव एवं सरस्वती

दोनों को माना जाता है इसी कारण दुर्गा सप्तशती की मूर्ति रहस्य में दोनों को एक प्रकृति का कहा गया है अतः माता सरस्वती के अन्य नामों में इन्ह शिवानु [संगीत] श्वेत कमल पर मैया विराज हाथ में इनकी वीणा साज अन्य हस्त पुस्तक और माला सब जीवों में वाणी डाला मान किया ब्रह्मा का

वंदन स्तुति करके किया अभिनंदन दिया ब्रह्मा ने सरस्वती नाम सत्य लोक है मां का धान मां देती है कला स्वर ज्ञान मूर्ख भीज से बन भगवान जो मां कान से दिन कर पार उनको मिलता मां का साथ ब्रह्म विद्या को देने वाली माही काली माही कराली जिन पे

होती है माता सहाय लक्ष्मी भी उन कृपा बरसाए भक्तों माता सरस्वती को भगवान ब्रह्मा जी की पत्नी माना जाता है एक बार की बात है सरस्वती माता को एक अनुष्ठान में पहुंचने में देर हो गई और ब्रह्मा जी को यह महत्त्वपूर्ण अनुष्ठान समय पर करना था इसलिए उन्होंने गायत्री नामक स्त्री से

शादी रचाई और अनुष्ठान करने बैठे तभी वहां सरस्वती मां आ गई जब माता सरस्वती को शादी की बात पता चली तो वह निराश और क्रोधित हो गई उसने ब्रह्मा को श्राप दिया ताकि मनुष्य फिर कभी ब्रह्मा जी की पूजा ना करें हिंदू धर्म में पाई जाने वाली अधिकांश

परंपराओं का यही मामला है जबकि त्रिमूर्ति के विष्णु और शिव और अन्य देवताओं की पूजा की जाती है ब्रह्मा की पूजा नहीं की जाती है भले ही वह ब्रह्मांड के निर्माता है बाद में माता को पश्चाताप हुआ तो उन्होंने कहा कि जहां वे अनुष्ठान करने बैठे थे बस

वही उनकी पूजा होगी भक्तों इसी कारण से पूरे संसार में ब्रह्मा जी का इकलौता मंदिर पुष्कर में है जहां उनकी पूजा अर्चना होती है बोलिए सरस्वती माता की जय पुष्कर क्षेत्र में ब्रह्मा जी को करना था सशम अनुष्ठान सरस्वती नहीं पहुंच पाएंगी इसका उनको हो गया मान तब ब्रह्माने

गायत्री मा से यज्ञ हेतु है शादी रचा पता चला जब शार दमाग क्रोधा अग्नि से वो भर आई दिया शाप फिर ब्रह्माजी को होगी नहीं अब कहीं भी पूजा सुनो हे ब्रह्मा मंदिर आपका पुष्कर छोड़ना होगा दूजा इसीलिए संपूर्ण जगत में एक ही मंदिर का है

वर्णन पुष्कर ही बस एक जगह है होता है ब्रह्मा पूजन भक्तों महाकवि कालिदास को अपने ज्ञान का घमंड हो गया था और खुद को सबसे विद्वान समझने लगे थे एक दिन वे यात्रा कर रहे थे तो रास्ते में उन्हें प्यास लगी उन्हें एक कुआ दिखाई दिया कुएं पर एक महिला पानी भर

रही थी कालिदास ने उस महिला से पीने के लिए पानी मांगा महिला ने कहा कि पहले अपना परिचय दीजिए उसके बाद मैं आपको पानी दूंगी कालिदास अपने ज्ञान के घमंड में डूबे हुए थे उन्होंने खुद नाम ना बताए हुए कहा कि मैं एक मेहमान हूं महिला ने कहा कि यह तो

सही नहीं है संसार में दो ही मेहमान है एक धन और दूसरा यवन ज्ञान की यह बात सुनकर कालिदास हैरान हो गए उन्होंने कहा कि मैं सहनशील हूं महिला बोली कि यह भी सही उत्तर नहीं है इस संसार में सिर्फ दो ही सहनशील है पहली धरती है जो हमारा बोझ उठाती है

दूसरे सहनशील पेड़ हैं जो पत्थर मारने पर भी फल नहीं देते कालिदास को समझ आ गया कि यह महिला कोई विद्वान है उन्होंने कहा कि मैं हठी हूं महिला बोली कि आप फिर गलत बात कह रहे हैं संसार में हठी भी दो ही हैं नाखून और बाल बार-बार काटने पर भी फिर से

बढ़ जाते हैं यह बातें सुनकर कालिदास ने अपनी हार मान ली उन्होंने कहा कि मैं मूर्ख हूं मुझे क्षमा करें महिला ने कहा कि तुम मूर्ख भी नहीं हो क्योंकि मूर्ख भी दो ही है एक राजा जो बिना योग्यता के भी सब पर राज करता है दूसरे मूर्ख हैं दरबारी

जो राजा को खुश करने के लिए गलत बात पर भी झूठी प्रशंसा करते हैं इस बात के बाद कालिदास महिला के पैरों में गिर पड़े तभी महिला ने कहा कि उठो पुत्र कालिदास ने ऊपर देखा तो वहां मां सरस्वती खड़ी थी देवी सरस्वती ने कालिदास को सीख

दी कि तुम्हें अपने ज्ञान का घमंड हो गया था और मेरे भक्तों को इस बुराई से बचना चाहिए इसलिए मैंने तुम्हारा घमंड तोड़ा है कालिदास ने देवी सरस्वती से क्षमा मांगी और संकल्प लिया कि अब से वे कभी भी घमंड नहीं करेंगे बोलिए भक्तों सरस्वती माता की

जय एक समय की बात है भक्तों कालिदास थे कवि महान उनको ज्ञान का हुआ घमन खुद को समझे सबसे विद्वान एक दिन कर रहे थे यात्रा रास्ते में लगी उनको प्यास देखा गुए प जो महिला को आ गए झट से उनके पास कहा है माती पानी पिला दो अतृप्त क ं को

तृप्त करा दो कहा महिला ने परिचय दीजिए उसके बाद ही पानी पीजिए जीत ना पाए करके शास्त्रार्थ ी का पढ गया उनका ज्ञान हाथ जोड़ कर मांगे क्षमा फिर जब हुआ उनको मां का भार इसीलिए भक्तों कभी घमंड नहीं करना चाहिए भक्तों वसंत ऋतु में मानव तो क्या

पशु पक्षी तक उल्लास भरने लगते हैं यूं तो माघ का पूरा मास ही उत्साह देने वाला होता है पर वसंत पंचमी का पर्व हमारे लिए कुछ खास महत्व रखता है इस दिन मां शारदे की पूजा कर उनसे ज्ञानवान विद्यावान होने की कामना की जाती है वही कलाकारों में इस दिन

का विशेष महत्व है कवि लेखक गायक वादक नाटककार नृत्य का अपने उपकरणों की पूजा के साथ मां सरस्वती की वंदना करते हैं बोलिए भक्तों सरस्वती माता की जय सरस्वती को कहते बागेश्वरी देती स्वर कला विद्यादान सरस्वती के जो भक्त है होते उनको मिलता यश सम्मान सरस्वती है संगीत की

जननी बीना इसका है पहचान हंस की करती है ये सवारी माता की महिमा है महान सरस्वती है वेदों की दात्री शास्त्र भी इन का करते बखान सारे कामना पूर्ण हो जाती जो करते माता का ध्यान ॐ श्री हिम सरस्वती नमः माता का यही मूल है मंत्र होते उन पे

विशेष कृपा जो घर में रखते सरस्वती अं वेद में देवी सरस्वती को मनुष्य की बुद्धि ज्ञान और मनोवृति हों का संरक्षक माना गया है देवी सरस्वती के गुणों को जितना समझो उतना कम मालूम पड़ता है मां सरस्वती का प्रकट माघ मा के शुक्ल पक्ष की

पंचमी को हुआ था इस वजह से हर साल सरस्वती पूजा होती है इस तिथि को बसंत पंचमी और श्री पंचमी भी कहते हैं मां सरस्वती को मां शारदा भगवती वीणावादिनी वागदेवी बागेश्वरी आदि नामों से पुकारते हैं उनको पीला रंग प्रिय है इसलिए बसंत पंचमी पर सरस्वती पूजा में पीले वस्त्र पीले फूल

पीले रंग की मिठाई आदि चढ़ाते हैं प्रेम से बोलिए सरस्वती माता की जय [संगीत] बात करो उस माता का जिनसे मिलता ज्ञान बिन उनके जग कुछ भी नहीं है गुणों की खान अज्ञानी को ज्ञान है देती मुख में वास हमेश विद्या दाती है मैया रती हरदम है

कलेश है विद्या दती मां है सरस्वती उ मा है विद्या दती मां है सरस्वती हो मा [संगीत] जग तो ब्रह्म नि रच ही दिया पर निक वाणी ना बोल मिथ्या वचन की होड़ मची दुनिया भीड़ा बड़ो कर रचना तब ज्ञान की हाथ क मंड सरकार ज्ञान की देवी प्रकट हुई करने जग का

उधार है विद्या दती मा है सरस्वती उ मा है विद्या दती मां है सरस्वती उ [संगीत] मा प्रणा वेद माला हाथ में अति शोभित है रोप जैसे जग प्रकाश से जगमन मुख पर ऐसा धूप वेद पुराण में वर्णित है मां का ये स्वरूप जिनसे जिब भा चंचल है ना जि भा मुख

चूप है विद्या दती मा है सरस्वती उ मा है विद्या दती मां है सरस्वती हो [संगीत] मा सत्य निवासन मैया का है उच्च स्थान बिन उनके ना जग चले दुनिया मूर्ख समान मूलतः ज्ञान की देवी है विणा धारणी नाम जो पा लेता है उन्हें मन जाते हैं हर

काम है विद्या दती मान है सरस्व सेरो मा है विद्या द के मां है सरस्वती हो [संगीत] मां करूं मैं विनती कर जोरी सब पे रखना ध्यान हम बालक अज्ञानी माता करना तुम कल्याण तुम बिन जगना दिनचर्या ना छाओ ना धो सद बुद्धि तुम दाती हो हो ज्ञान का रूप

है विद्या दाती मा है सरस्वती ओ मां है विद्या दती मां है सरस्वती हो मा [संगीत] हर घर जो नि वासनी हर बालक में विद्वान जो तुम्हें पाना चाहे हैं देती तुम स्थान पूजा पाठ भी मैया के निश्चित दिन है खास बसंत पंचमी सभी मना के करते है

उपवास है विद्या द की मा है सरस्वती ओ मां है विद्या द की मां है सरस्वती हो [संगीत] मा ज्ञान चेतना मां से मिलता माता है परिपूर्ण माता मैं तुमसे यही चाहूं ज्ञान प्रसाद का चण जि भा पर तुम वास करो मां करो ज्ञान की बात अधर्म डसे ना कभी हमें

घेर ना कोई पाप है विद्या दती मां है सरस्वती उ मा है विद्या दती मां है सरस्वती हो [संगीत] मां सुर संगीत की देवी तुम हो तुम ही मंत्र में गुण जो जपता उ मंग कभी कर देती हो निपुण राज हंस पर शोभित माता अजब है मीठा

भाव हर बालक बस तेरा चाहे सफल होने का छा है विद्या द प्री मा है सरस्वती उ मा है विद्या दती मां है सरस्वती हो [संगीत] मा मां शारदे वीणा वाली पुस्तक धारण नाम जो तुमको है मन में बसा सुंदर दे परिणाम ना कोई डर उसको सताए करे ना कोई

निराश धर्म की रक्षक तुम देवी हो बस तेरा है आश है विद्या दती मां है सरस्वती उ मा है विद्या दती मा है सरस्वती हो मा [संगीत] स्वेत वर्ण चचंदा सा चमके सर पे मुकुट अद्भुत ज्ञान की देवी तुम ही हो मैया हम सब तेरे सपूत विद्या दाती ज्ञान की दे इतना कर

उपकार निर्मल मन मेरा रहे सदा ज्ञान का भर भंडार है विद्या दती मा है सरस्वती उमा है विद्या दती मां है सरस्वती हो मा [संगीत] ब्रह्मा विष्णु आदर करते हर पल है हरदम सकल मनोरथ पूरा करती डरता मां से अधर्म हे कल्याणी अर्ज है मेरी चाह बस मैं ज्ञान पूरा कर दे माशा

सारे ये अरमान है विद्या दत्र मान है सरस्वती उ मा है विद्या दाती मां है सरस्वती [संगीत] मा देव दुलारी आप हो माता अर्पण है ये भाव मुख की वाणी भर मिठास से रुके ना मेरी नाव पुस्तक धारण खास है तेरी रचना सब चरितार करता तो बस तुम ही हो माता मुझे

ज्ञान का स्वार है नित्या दती मा है सरस्वती हो मां है विद्या दती मां है सरस्वती हो [संगीत] मा भक्त तुम्हें बुलाए माता कलम की थाम लो डोर अज्ञानी बालक हो माता शब्द चयन कमजोर ना कोई आशा है जगत से चारों ओर अंधिया शब्द की भाषा से लडू कलम मेरा

हथियार है विद्या दती मान है सरस्वती हो मां है विद्या दती मां है सरस्वती हो [संगीत] मा कभी जो मेरा मन विचलित हो गलत हो मन की चाह वीणा धारणी कलम की देवी तुम्ही दिखाना राम सत्य अहिंसा पथ पर लाना लिक विद्या विवेक स्वच्छ हो सारे मन के राधे काम करो

सब नेक है निद दात्र मां है सरस्वती ओ मां है विद्या दती मां है सरस्वती मा [संगीत] हर पुराण हर छंद में तुम हो तुम ही हो कविता पाठ ज्ञान की धारा तुम्ही से बहती तुम ही ज्ञान की घाट विणा धारणी सुर में सरगम ताल में ताल अने

ल धारा है तुम्ही से मैया तुम्ही से सारे टेक है विद्या द की मा है सरस्वती उ मा है विद्या द प्र मा है सरस्वती हो [संगीत] मा [संगीत] प्रजापति स्वयं हो मनो सतर श सत काम तुमसे जुड़ा है धर्म यहां तुही से इनका

ना विद्या ज्ञान की जड़ तुम ही हो रहना मा सन्मुख घर मेरे तुम वास करो डसे ना कोई दुख है विद्या दती मां है सरस्वती ओ मा है विद्या दती मां है सरस्वती हो [संगीत] मा महिमा तेरी जितनी कहू लगे है मैया थोर शिव हरि फौजी लिखे ये वाणी ज्ञान की कर दो

भोर प्रकाश पूज हो तुम ही विवेक की आशा और विश्वास हर क्षण तेरा ही वर्णन अज्ञान की करती नास है विद्या दती मा है सरस्वती उ मा है विद्या दती मां है सरस्वती हो [संगीत] मा चरण कमल में रख लो मैया विनती भाव है मोर ज्ञान की देवी हो मैया ज्ञान हाथ तेरे

डोर हर पल हर दम बस ये चाहू नए बने सब में तेरी कड़ी जब जोड़ फिरो बन जाए एक गीत है विद्या दाती मां है सरस्वती यो मा है विद्या दती मां है सरस्वती हो मां [संगीत] श्री गणेश की पूजा संग में माता तेरी विशेष दुनिया करती तेरी आराधना हरदम और

हरमेश लाभ की देवी दया वती तुम तुमसे है कण कण तेरे बिना ना कोई फल हो ना हो कोई क्षण है निद्या दती मा है सरस्वती हो मां है विद्या दती मां है सरस्वती हो मा [संगीत] कमल धारणी हे माता तुम छेड़ दो वीणा की राग बंद विवेक खुल जाए खुले भक्त के

भाग्य कर जोरी करू अर्ज में मान महिमा मां की महान विद्या धीवन सब गोहरा दे दो ज्ञान का दान है विद्या दती मा है सरस्वती उ मा है विद्या दती मां है सरस्वती [संगीत] उमा हर वाद्य के बंधन तुमसे णा चाहे सतार राग रागिणी रोचक रचना गीत संगीत

प्रकार तुम बिन माता सब अधूरा शब्द हो चाहे साहित्य तेरी आशीष से सब संभव है नाटक नाट नित्य है नित्या दत्र मा है सरस्वती उ मां है विद्या दती मां है सरस्वती हो [संगीत] मा तुम ही मार्ग हो इस जीवन की सुगम राह विशा अचत अवस्था की चेतना ज्ञान रूपी तुम

ढाल आओ माता आकर जग में जग को राह दिखाओ भटका राही राह निहार राह की राज समझाओ है नित्या दती मा है सरस्वती उ मा है विद्या दती है सरस्वती उमा जनक जननी पदम रज निज मस्तक पर धरी बंदो मातो सरस्वती बुद्धि बल दे दातारी पूर्ण जगत में व्याप्त तब महिमा मित

अनंत दुष्ट जनों के पाप को मां तू तू ही अब [संगीत] [संगीत] हंतु जय श्री सकल बुद्धि बल रासी जय सर्वज्ञ अमर अविना जय जय जय विणा करर धारी करती सदास हंस [संगीत] सवारी रूप चतुर्भुज धारी माता सकल विश्व अंदर बैठता जग में पाप बुद्धि जब होती तब ही धर्म की प की

ज्योति तब ही मातो का निज अवतारी पाप हीन करती महतारी वाल्मीकि जी थे हत्यारा तब प्रसाद जाने संसारा रामचरित जो रच बनाई आदि कवि की पदवी पाई कालिदास जो भय प उठता तेरी कृपा दृष्टि से माता तुलसी सुर आने वि दवाना भय और जो ज्ञानी नाना नार रहे अवलंब केवल कृपा आपकी [संगीत]

अंबा करहु कृपा सोई मातो भवानी दुखित न निज दास ही जानी पुत्र करही अपराध बहुता तेही ना धर चित माता राखुला जननी अब मेरी विनय कर भाती बहु तेरी मैं अनाथ तेरे अवलंब कृपा करो जय जय [संगीत] जगदंबा मधु कैटव जो अति बलवाना बाहु योद्ध विष्णु से ठना समर हजार पच में

धोरा फिर भी मुख उन नहीं बोरा मात सहायक कित ही काला बुद्धि विपरित भई खल हाला हित मृत्यु भय खल केरी पुर वहु मात मनोरथ [संगीत] मेरी ंड मुंड जो थे ब पता क्षण महु संहारे उन माता रक्त बीज से समरथ पापी सुरमन हृदय धरा सब कापी काटयो सिर्ज में कदली

खंबा बार बार बिन बऊ जग दबा जग प्रसिद्ध जो शुंभ नि शुंभ क्षण में बांधता ही तू [संगीत] अंबा भरत मा तो बुधि पेर उजाई रामचंद्र वनवास करा यही विधि रा वण बध तो केना सुर नर मुनि सबको सुख दीना को समरथ तब यश गुण गाना निगम अनादि अनंत

बखाना विष्णु रुद्र जस कहिन मरी जिनकी हो तुम रक्षा कारी [संगीत] रट दंत का और शताक्षी नाम अपार है दानव भक्षी दुर्गम काज धरा पर केहा दुर्गा नाम सकल जग लीहा दुर्ग आदि हरनी तो माता कृपा कर हो जब जब सुख दाता मृप को पित को मारन चाहे कानन में घेरे मगना [संगीत]

है सागर मध्य पत के भजे पतित पान नहीं को संगी भूत प्रेत बाधा या दुख में हो दरिद्र अथवा संकट में नाम जपे मंगल सब होई संशय स में करई ना कोई पुत्र हीन जो आतुर भा सब छड़ी पूंजे ही [संगीत] भाई कर पाठ नित यह जाने सा होई पुत्र सुंदर गुण

ईशा धूपा दिख नवेद चरावे संकट रहित वश हो जावे भक्ति मातु की करे हमेशा निकट नावे ताही कलेशा बंदी पाठ करे सत बारा बंदी पाश दूर हो [संगीत] सारा बंदी पाठ करे सतवारा बंदी पाश दर हो सारा राम सागर बांध हेतु भवानी कीज कृपा दास निज जानी मां तो सूर कांति तव अ

अंधकार मम रो डोवन से रक्षा करह परो ना मैं भव कोप बल बुद्धि विद्या देहु मोही सुन हो सरस्वती मात राम सागर अधम को आश्रय तू ही दे दा [संगीत] [संगीत] तू ओम जय सरस्वती माता जय जय सरस्वती माता सदगुण वैभव शालिनी सदगुण वैभव शालिनी त्रिभुवन विख्यात ओम जय सरस्वती

माता ओम जय सरस्वती माता मैया जय सरस्वती माता सदगुरु वैभवशाली सदगुरु वैभवशाली त्रिभुवन वि जाता ओम जय सरस्वती [संगीत] माता चंद्र वदनी पदमा ुति मंगलकारी मैया ुति [संगीत] मंगलकारी सोहे शुभ हंस सवारी सोहे शुभ हंस सवारी अतुल तेज धारी ओम जय सरस्वती माता [संगीत] बाई कर में वीणा जाए करमाला मैया जाए कर

माला शीष मुकुट मणि सोहे शीष मुकुट मण सोहे गल मुति अन माला ओम जय सरस्वती [संगीत] माता देवी शरण जो आए उनका उद्धार किया मैया उन का उद्धार किया बैठी मंथरा दासी बैठी मंथरा दासी रावण संहार किया ओम जय सरस्वती [संगीत] माता विद्या ज्ञान प्रदा ज्ञान प्रकाश भरो ज्ञान प्रकाश

भरो मोह अज्ञान ति मेर का मोह अज्ञान तिमिर का जग से नाश करो ओम जय सरस्वती माता [संगीत] धोप दीप फल मेवा मां स्वीकार करो मा स्वीकार करो ज्ञान चक्षु देवाता ज्ञान चक्षु दे माता जग नि स्तार करो ओ ओम जय सरस्वती [संगीत] माता मां सरस्वती की आरती जो कोई जन

गावे जो कोई जन गावे हितकारी सुख कारी हितकारी सुख कारी ज्ञान भक्ति पावे ओम जय सरस्वती [संगीत] माता ओम सरस्वत नमो नमः ओ वर प्रदाय नमो नमः ओम महा भद्राय नमो नमः ओम महा [संगीत] [संगीत] को अन्य शक्ति स्वरूपों के साथ मां सरस्वती की भी पूजा अर्चना की जाती है

कहते हैं स्वयं विष्णु अवतार श्री कृष्ण जी ने सर्वप्रथम मां सरस्वती की पूजा अर्चना की थी इनकी उपासना करने से कालिदास जैसे मूर्ख भी विद्वान बन गए माघ शुक्ल पंचमी यानी वसंत पंचमी को इनकी विशेष रूप से पूजन की परंपरा है भक्तो मां सरस्वती की अनेक प्रचलित कथाएं हैं जिनमें से कुछ

पावन कथाओं को आज हम प्रस्तुत करेंगे इन कथाओं के श्रवण से असीम सुख व शांति की अनुभूति होती है तो आइए भक्तों सुनते हैं मां सरस्वती की कुछ प्रसिद्ध कथाएं करते वंदन प्रथम पूज की जो है गौरी पुत्र गणेश सिद्धि विनायक हम भक्तों पर रखना अपने

विशेष फिर सरस्वती का करके वंदन करते हैं हम महिमा मंडल ज्ञान के देवी सुर की सरिता तू ही पावन तू ही पविता मां का आसन है हंसा निरंजना मां है चतुरानन जो भी करता मां का ध्यान उसको मिलता विद्यादान सरस्वती मां की कथा उनमें से हम

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आज्ञा पाकर अपने कमंडल से थोड़ा सा जल हाथ में लेकर पृथ्वी पर छिड़क दिया जिससे पृथ्वी कंपित होने लगी और एक अद्भुत शक्ति स्वरूपा चतुर्भुजी सुंदर मनमोहक स्त्री प्रकट हुई जिसकी एक हाथ में वीणा एवं दूसरा हाथ वर मुद्रा में था वही अन्य दोनों हाथों में पुस्तक व माला थी जब इस

देवी ने वीणा का मधुर नाद किया तो संसार के समस्त जीव जंतुओं को वाणी प्राप्त हुई जब श्री विष्णु की आज्ञा पाया तब ब्रह्मा ने सृष्टि बनाया नदी झड़ने और पेड़ पहार सज किया है धरा शिंगार पर यह धरा थी बिल्कुल निर्जल तब ब्रह्माने रचा नारीन सृष्टि रच के ब्रह्म पछताए यह

सृष्टि उन्ह जरा न भाए सब कुछ शांत वसू ना लागे अब क्या करें वो इससे आगे तब ब्रह्मा ने जला को लेकर छिड़क दिया है सुक्त धरा पर प्रकट हुई नारी एक सुंदर हस्ते वीणा दूजा मुद्रा ब छेड़ा है का जो तान मिला है सबको ध्वनि का ज्ञान

भक्तो ब्रह्मा जी अपने कृति से बहुत प्रसन्न हुए और उनकी बनाई गई सृष्टि में जान आ गई पंछी चहचहाना लगे कलब करने लगे नदिया झड़ने कलकल करने लगे समस्त जीवों में वाणी का संचार हो गया पूरी पृथ्वी मानो मुस्कुराने लगी देवी सरस्वती ने ब्रह्मा जी की स्तुति वंदना की ब्रह्मा जी

उनकी स्तुति से अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्हें सत्य लोक में परम पदत किया इस प्रकार भक्तों मां सरस्वती का आविर्भाव हुआ ब्रह्म विद्या एवं नृत्य संगीत क्षेत्र के अधिष्ठाता के रूप में नत शिव एवं सरस्वती दोनों को माना जाता है इसी कारण दुर्गा सप्तशती की मूर्ति रहस्य में

दोनों को एक प्रकृति का कहा गया है अतः माता सरस्वती के अन्य नामों में इन्हें शिवानु [संगीत] [संगीत] जाार्मेटर माने किया ब्रह्मा का वंदन स्तुति करके किया अभिनंदन दिया ब्रह्मा ने सरस्वती नाम सत्य लोक है मां का धान मां देती है कला स्वर ज्ञान मूर्ख भी जिससे बन

भगवान जो मां कान से दिन कर पार उनको मिलता मां का साथ ब्रह्म विद्या को देने वाली मां ही का ली माही कराली जिन पे होती है माता सहाई लक्ष्मी भी उन कृपा बसा भक्तों माता सरस्वती को भगवान ब्रह्मा जी की पत्नी माना जाता है एक बार की बात

है सरस्वती माता को एक अनुष्ठान में पहुंचने में देर हो गई और ब्रह्मा जी को यह महत्त्वपूर्ण अनुष्ठान समय पर करना था इसलिए उन्होंने गायत्री नामक स्त्री से शादी चचाई और अनुष्ठान करने बैठे तभी वहां सरस्वती मां आ गई जब माता सरस्वती को शादी

की बात पता चली तो वह निराश और क्रोधित हो गई उसने ब्रह्मा को श्राप दिया ताकि मनुष्य फिर कभी ब्रह्मा जी की पूजा ना करें हिंदू धर्म में पाई जाने वाली अधिकांश परंपराओं का यही मामला है जबकि त्रिमूर्ति के विष्णु और शिव और अन्य देवताओं की पूजा की जाती है ब्रह्मा की

पूजा नहीं की जाती है भले ही वह ब्रह्मांड के निर्माता है बाद में माता को पश्चाताप हुआ तो उन्होंने कहा कि जहां वे अनुष्ठान करने बैठे थे बस वही उनकी पूजा होगी भक्तों इसी कारण से पूरे संसार में ब्रह्मा जी का इकलौता मंदिर पुष्कर में है जहां उनकी पूजा अर्चना होती है बोलिए

सरस्वती माता की जय पुष्कर में ब्रह्मा जी को करना था सस समय अनुष्ठान सरस्वती नहीं पहुंच पाएंगे इसका उनको हो गया मान तब ब्रह्माने गायत्री मास यज्ञ हेतु है शादी रचाई पता चला जब शार दमा को क्रोधा अग्नि से वो भर आई दिया शाप फिर ब्रह्मा जीी को होगी नहीं

अब कहीं भी पूजा सुनो हे ब्रह्मा मंदिर आपका पुष्कर छोड़ना होगा दूजा इसीलिए संपूर्ण जगत में एक ही मंदिर का है वर्णन पुष्कर ही बस एक जगह है जहां होता है ब्रह्मा पूजन भक्तों महाकवि कालिदास को अपने ज्ञान का घमंड हो गया था और खुद को सबसे विद्वान

समझने लगे थे एक दिन वे यात्रा कर रहे थे तो रास्ते में उन्हें प्यास लगी उन्हें एक कुआं दिखाई दिया कुएं पर एक महिला पानी भर रही थी कालिदास ने उस महिला से पीने के लिए पानी मांगा महिला ने कहा कि पहले अपना परिचय दीजिए उसके बाद मैं आपको पानी दूंगी

कालिदास अपने ज्ञान के घमंड में डूबे हुए थे उन्होंने खुद नाम ना बताए हुए कहा कि मैं एक मेहमान हूं महिला ने कहा कि यह तो सही नहीं है संसार में दो ही मेहमान है एक धन और दूसरा यवन ज्ञान की यह बात सुनकर कालिदास हैरान हो

गए उन्होंने कहा कि मैं सहनशील हूं महिला बोली कि यह भी सही उत्तर नहीं है इस संसार में सिर्फ दो ही सहनशील है पहली धरती है जो हमारा बोझ उठाती है दूसरे सहनशील पेड़ हैं जो पत्थर मारने पर भी फल नहीं देते हैं कालिदास को समझ आ गया कि यह महिला कोई

विद्वान है उन्होंने कहा कि मैं हठी हूं महिला बोली क्या फिर गलत बात कह रहे हैं संसार में हठी भी दो ही है नाखून और बाल बार-बार काटे पर भी फिर से बढ़ जाते हैं यह बातें सुनकर कालिदास ने अपनी हार मानली उन्होंने कहा कि मैं मूर्ख हूं मुझे क्षमा

करें महिला ने कहा कि तुम मूर्ख भी नहीं हो क्योंकि मूर्ख भी दो ही है एक राजा जो बिना योग्यता के भी सब पर राज करता है दूसरे मूर्ख हैं दरबारी जो राजा को खुश करने के लिए गलत बात पर भी झूठी प्रशंसा करते हैं इस बात के बाद कालिदास महिला के

पैरों में गिर पड़े तभी महिला ने कहा कि उठो पुत्र कालिदास ने ऊपर देखा तो वहां मां सरस्वती खड़ी थी देवी सरस्वती ने कालिदास को सीख दी कि तुम्हें अपने ज्ञान का घमंड हो गया था और मेरे भक्तों को इस बुराई से बचना चाहिए इसलिए मैंने तुम्हारा

घमंड तोड़ा है कालिदास ने देवी सरस्वती से क्षमा मांगी और संकल्प लिया कि अब से वे कभी भी घमंड नहीं करेंगे बोलिए भक्तों सरस्वती माता की जय एक समय की बात है भक्तो कालिदास थ कवि महान उनको ज्ञान का हुआ घमन खुद को समझ सबसे विद्वान एक दिन कर रहे थे यात्रा

रास्ते में लगी उनको प्यास देखा कोए बजो महिला को आ गए झट से उनके पास कहा है माती पानी पिला दो अतृप्त कंठ को तृप्त करा दो कहां महिला ने परिचय दीजिए उसके बाद ही पानी दीजिए जीत ना पाए करके शास्त्रार्थ ी का पड़ गया उनका ज्ञान हाथ जोड़कर मांगे

क्षमा फिर जब हुआ उनको मां का इसीलिए भक्तों कभी घमंड नहीं करना चाहिए भक्तों बसंत ऋतु में मानव तो क्या पशु पक्षी तक उल्लास भरने लगते हैं यूं तो माग का पूरा मास ही उत्साह देने वाला होता है पर वसंत पंचमी का पर्व हमारे लिए कुछ

खास महत्व रखता है इस दिन मां शारदे की पूजा कर उनसे ज्ञानवान विद्यावान होने की कामना की जाती है वही कलाकारों में इस दिन का विशेष महत्व है कवि लेखक गायक वादक नाटककार नृत्य अपने उपकरणों की पूजा के साथ मां सरस्वती की वंदना करते हैं बोलिए भक्तों सरस्वती माता की

जय सरस्वती को कहते बागेश्वरी देती स्वर कला विद्यादान सरस्वती के जो भक्त है होते उनको मिलता यश सम्मान सरस्वती है संगीत की जननी वीणा इसका है पहचान हंस के करती है ये सवारी माता की महिमा है महान सरस्वती है वेदों की दात्री शास्त्र भीन का करते बख सारी कामना पूर्ण हो जाए

जो करते माता का ध्यान ओम श्री हिम सरस्वती नमः माता का यही मूल है मंत्र होते उन पर विशेष कृपा जो घर में रखते सरस्वती अं ऋग्वेद में देवी सरस्वती को मनुष्य की बुद्धि ज्ञान और मनोवृति हों का संरक्षक माना गया है देवी सरस्वती के गुणों को जितना समझो उतना कम मालूम पड़ता

है मां सरस्वती का प्रकट माघ मा के शुक्ल पक्ष की पंचमी को हुआ था इस वजह से हर साल सरस्वती पूजा होती है इस तिथि को बसंत पंचमी और श्री पंचमी भी कहते हैं मां सरस्वती को मां शारदा भगवती वीणावादिनी वागदेवी बागेश्वरी आदि नामों से पुकारते

हैं उनको पीला रंग प्रिय है इसलिए बसंत पंचमी पर सरस्वती पूजा में पीले वस्त्र पीले फूल पीले रंग की मिठाई आदि चढ़ाते हैं प्रेम से बोलिए सरस्वती माता की जय #Basant #Panchami #ननसटप #सरसवत #मत #भजन #Nonstop #Sarswati #Mata #Bhajan #Saraswati #Bhajan
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