काव्य में लोक-मंगल की साधनावस्था (निबन्ध) : आचार्य रामचन्द्र शुक्ल

काव्य में लोक-मंगल की साधनावस्था (निबन्ध) : आचार्य रामचन्द्र शुक्ल Kavya Mein Lok-Mangal Ki Sadhanavastha (Nibandh) : Acharya Ramchandra Shukla तदेजति तन्नैजति—ईशावास्योपनिषद् आत्मबोध और जगद्बोधा के बीच ज्ञानियों ने गहरी खाई खोदी पर हृदय ने कभी उसकी परवा न की; भावना दोनों को एक ही मनकर चलती रही। इस जगत् के बीच जिस आनंद मंगल …

Read more

साधारणीकरण और व्यक्ति-वैचित्र्यवाद (निबन्ध) : आचार्य रामचन्द्र शुक्ल

साधारणीकरण और व्यक्ति-वैचित्र्यवाद (निबन्ध) : आचार्य रामचन्द्र शुक्ल Sadharanikaran Aur Vyakti-Vaichitryavad (Nibandh) : Acharya Ramchandra Shukla किसी काव्य का श्रोता या पाठक जिन विषयों को मन में लाकर रति, करुणा, क्रोध, उत्साह इत्यादि भावों तथा सौंदर्य, रहस्य, गांभीर्य आदि भावनाओं का अनुभव करता है, वे अकेले उसी के हृदय से संबंध रखनेवाले नहीं होते; मनुष्य …

Read more

रसात्मक बोध के विविध रूप (निबन्ध) : आचार्य रामचन्द्र शुक्ल

रसात्मक बोध के विविध रूप (निबन्ध) : आचार्य रामचन्द्र शुक्ल Rasatmak Bodh Ke Vividh Roop (Nibandh) : Acharya Ramchandra Shukla संसार सागर की रूप तरंगों से ही मनुष्य की कल्पना का निर्माण और इसी रूप गति से उनके भीतर विविधा भावों या मनोविकारों का विधान हुआ है। सौंदर्य, माधुर्य, विचित्रता, भीषणता, क्रूरता इत्यादि की भावनाएँ …

Read more

क्रोध (निबन्ध) : आचार्य रामचन्द्र शुक्ल

क्रोध (निबन्ध) : आचार्य रामचन्द्र शुक्ल Krodh (Nibandh) : Acharya Ramchandra Shukla क्रोध दुःख के चेतन कारण के साक्षात्कार या अनुमान से उत्पन्न होता है। साक्षात्कार के समय दुःख और उसके कारण के सम्बन्ध का परिज्ञान आवश्यक है। तीन चार महीने के बच्चे को कोई हाथ उठा कर मार दे तो उसने हाथ उठाते तो …

Read more

भय (निबन्ध) : आचार्य रामचन्द्र शुक्ल

भय (निबन्ध) : आचार्य रामचन्द्र शुक्ल Bhay (Nibandh) : Acharya Ramchandra Shukla किसी आती हुई आपदा की भावना या दुख के कारण के साक्षात्‍कार से जो एक प्रकार का आवेगपूर्ण अथवा स्‍तंभ-कारक मनोविकार होता है उसी को भय कहते हैं। क्रोध दुख के कारण पर प्रभाव डालने के लिए आकुल करता है और भय उसकी …

Read more

ईर्ष्या (निबन्ध) : आचार्य रामचन्द्र शुक्ल

ईर्ष्या (निबन्ध) : आचार्य रामचन्द्र शुक्ल Irshya (Nibandh) : Acharya Ramchandra Shukla जैसे दूसरे के दु:ख को देख दु:ख होता है वैसे ही दूसरे के सुख या भलाई को देखकर भी एक प्रकार का दु:ख होता है, जिसे ईर्ष्या कहते हैं। ईर्ष्या की उत्पत्ति कई भावों के संयोग से होती है, इससे इसका प्रादुर्भाव बच्चों …

Read more

घृणा (निबन्ध) : आचार्य रामचन्द्र शुक्ल

घृणा (निबन्ध) : आचार्य रामचन्द्र शुक्ल Ghrina (Nibandh) : Acharya Ramchandra Shukla सृष्टि विस्तार से अभ्यस्त होने पर प्राणियों को कुछ विषय ग्राह्य और कुछ अग्राह्य प्रतीत होने लगते हैं। इन अग्राह्य विषयों के उपस्थित होने पर जो दु:ख होता है उसे घृणा कहते हैं। सुबीते के लिए हम यहाँ घृणा के दो विभाग करते …

Read more

लोभ और प्रीति (निबन्ध) : आचार्य रामचन्द्र शुक्ल

लोभ और प्रीति (निबन्ध) : आचार्य रामचन्द्र शुक्ल Lobh Aur Preeti (Nibandh) : Acharya Ramchandra Shukla जिस प्रकार सुख या आनंद देनेवाली वस्तु के संबंध में मन की ऐसी स्थिति को जिसमें उस वस्तु के अभाव की भावना होते ही प्राप्ति, सान्निध्य या रक्षा की प्रबल इच्छा जग पड़े, लोभ कहते हैं। दूसरे की वस्तु …

Read more

लज्जा और ग्लानि (निबन्ध) : आचार्य रामचन्द्र शुक्ल

लज्जा और ग्लानि (निबन्ध) : आचार्य रामचन्द्र शुक्ल Lajja Aur Glani (Nibandh) : Acharya Ramchandra Shukla हम जिन लोगों के बीच रहते हैं अपने विषय में उनकी धारणा का जितना ही अधिक ध्यान रखते हैं उतना ही अधिक प्रतिबंध अपने आचरण पर रखते हैं। जो हमारी बुराई, मूर्खता या तुच्छता के प्रमाण पा चुके रहते …

Read more

करुणा (निबन्ध) : आचार्य रामचन्द्र शुक्ल

करुणा (निबन्ध) : आचार्य रामचन्द्र शुक्ल Karuna (Nibandh) : Acharya Ramchandra Shukla जब बच्चे को संबंधज्ञान कुछ कुछ होने लगता है तभी दु:ख के उस भेद की नींव पड़ जाती है जिसे करुणा कहते हैं। बच्चा पहले परखता है कि जैसे हम हैं वैसे ही ये और प्राणी भी हैं और बिना किसी विवेचना क्रम …

Read more