नाटकों का आरम्भ : जयशंकर प्रसाद (निबन्ध)

नाटकों का आरम्भ : जयशंकर प्रसाद (निबन्ध) Natakon Ka Aarambh (Nibandh) : Jaishankar Prasad कहा जाता है कि ‘साहित्यिक इतिहास के अनुक्रम में पहले गद्य तब गीति-काव्य और इस के पीछे महाकाव्य आते हैं’; किन्तु प्राचीनतम संचित साहित्य ऋग्वेद छन्दात्मक है। यह ठीक है कि नित्य के व्यवहार में गद्य की ही प्रधानता है; किन्तु …

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रंगमंच – जयशंकर प्रंगमंचाद (निबन्ध)

रंगमंच – जयशंकर प्रंगमंचाद (निबन्ध) Rangmanch (Nibandh) : Jaishankar Prasad भरत के नाट्य-शास्त्र में रंगशाला के निर्माण के संबंध में विस्तृत रूप से बताया गया है। जिस ढंग के नाट्य-मंदिरों का उल्लेख प्राचीन अभिलेखों में मिलता है, उससे जान पड़ता है कि पर्वतों की गुफाओं में खोद कर बनाये जाने वाले मंदिरों के ढंग पर …

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आरम्भिक पाठ्य काव्य -जयशंकर प्रसाद (निबन्ध)

आरम्भिक पाठ्य काव्य – जयशंकर प्रसाद (निबन्ध) : Aarambhik Pathya Kavya (Nibandh) : Jaishankar Prasad नाट्य से अतिरिक्त जो काव्य है उसे रीति ग्रन्थों में श्रव्य कहते हैं। कारण कि प्राचीन काल में ये सब सुने या सुनाये जाते थे; इसलिए श्रुति, अनुश्रुति इत्यादि शब्द धर्म-ग्रन्थों के लिए भी व्यवहृत थे। किन्तु आज कल तो …

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यथार्थवाद और छायावाद – जयशंकर प्रसाद (निबन्ध)

यथार्थवाद और छायावाद जयशंकर प्रसाद (निबन्ध) : Yatharthvad Aur Chhayavad (Nibandh) : Jaishankar Prasad हिन्दी के वर्तमान युग की दो प्रधान प्रवृत्तियाँ हैं जिन्हें यथार्थवाद और छायावाद कहते हैं। साहित्य के पुनरुद्धार काल में श्री हरिश्चन्द्र ने प्राचीन नाट्य रसानुभूति का महत्व फिर से प्रतिष्ठित किया और साहित्य की भाव-धारा को वेदना तथा आनन्द में …

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जीवनी- निबन्धकार एवं कवि पूर्णसिंह : प्रभात शास्त्री

जीवनी- निबन्धकार एवं कवि पूर्णसिंह : प्रभात शास्त्री Jivani- Nibandhkar Evm Kavi Puran Singh : Prabhat Shastri जन्म और शिक्षा प्राकृतिक दृश्यों, पहाड़ियों और झरनों से सुहावनी सीमाप्रांत की भूमि में, एबटाबाद से पाँच मील दूर सलहड गाँव में, मिट्टी के बने मकान में एक सिख परिवार रहता था जिसका मुख्य पुरुष सरकारी नौकरी करके …

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सच्ची वीरता – सरदार पूर्ण सिंह (हिन्दी निबंध)

सच्ची वीरता – सरदार पूर्ण सिंह (हिन्दी निबंध) Sacchi Veerta (Hindi Essay) : Sardar Puran Singh सच्चे वीर पुरुष धीर, गम्भीर और आज़ाद होते हैं । उनके मन की गम्भीरता और शांति समुद्र की तरह विशाल और गहरी या आकाश की तरह स्थिर और अचल होती है । वे कभी चंचल नहीं होते । रामायण …

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कन्या-दान – सरदार पूर्ण सिंह (हिन्दी निबंध)

कन्या-दान -सरदार पूर्ण सिंह (हिन्दी निबंध) Kanyadan (Hindi Essay) : Sardar Puran Singh नयनों की गंगा धन्य हैं वे नयन जो कभी कभी प्रेम-नीर से भर पाते हैं। प्रति दिन गंगा-जल में तो स्नान होता ही है परंतु जिस पुरुष ने नयनो की प्रेम-धारा में कभी स्नान किया है वही जानता है कि इस स्नान …

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पवित्रता – सरदार पूर्ण सिंह (हिन्दी निबंध)

पवित्रता – सरदार पूर्ण सिंह (हिन्दी निबंध) Pavitarta (Hindi Essay) : Sardar Puran Singh ब्रह्मकान्ति अनेक सूर्य आकाश के महामण्डल में घूम रहे हैं, अनन्त ज्योति इधर उधर और हर जगह विखर रहे हैं। सफेद सूर्य, पीले सूर्य, नीले सूर्य और लाल सूर्य, किसी के प्रेम में अपने अपने घरों में दीपमाला कर रहे हैं …

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आचरण की सभ्यता : सरदार पूर्ण सिंह (हिन्दी निबंध)

आचरण की सभ्यता : सरदार पूर्ण सिंह (हिन्दी निबंध) Aacharan Ki Sabhyata (Hindi Essay) : Sardar Puran Singh विद्या, कला, कविता, साहित्‍य, धन और राजस्‍व से भी आचरण की सभ्‍यता अधिक ज्‍योतिष्‍मती है। आचरण की सभ्‍यता को प्राप्‍त करके एक कंगाल आदमी राजाओं के दिलों पर भी अपना प्रभुत्‍व जमा सकता है। इस सभ्‍यता के …

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मजदूरी और प्रेम : सरदार पूर्ण सिंह (हिन्दी निबंध)

मजदूरी और प्रेम : सरदार पूर्ण सिंह (हिन्दी निबंध) Majdoori Aur Prem (Hindi Essay) : Sardar Puran Singh हल चलाने वाले का जीवन हल चलाने वाले और भेड़ चराने वाले प्रायः स्वभाव से ही साधु होते हैं। हल चलाने वाले अपने शरीर का हवन किया करते हैं। खेत उनकी हवनशाला है। उनके हवनकुंड की ज्वाला …

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