जीवन सार (आत्मकथा) : प्रेमचन्द

जीवन सार (आत्मकथा) : प्रेमचन्द Jeevan Saar (Autobiography) : Munshi Premchand १ मेरा जीवन सपाट, समतल मैदान है, जिसमें कहीं-कहीं गढ़े तो हैं, पर टीलों, पर्वतों, घने जंगलों, गहरी घाटियों और खण्डहरों का स्थान नहीं है। जो सज्जन पहाड़ों की सैर के शौकीन हैं, उन्हें तो यहाँ निराशा ही होगी। मेरा जन्म सम्वत् १९६७ में …

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मेरी पहली रचना : मुंशी प्रेमचंद

मेरी पहली रचना : मुंशी प्रेमचंद Meri Pehli Rachna : Munshi Premchand उस वक्त मेरी उम्र कोई 13 साल की रही होगी। हिन्दी बिल्कुल न जानता था। उर्दू के उपन्यास पढऩे-लिखने का उन्माद था। मौलाना शहर, पं. रतननाथ सरशार, मिर्जा रुसवा, मौलवी मोहम्मद अली हरदोई निवासी, उस वक्त के सर्वप्रिय उपन्यासकार थे। इनकी रचनाएं जहां …

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शहीद-ए-आज़म (कहानी) : मुंशी प्रेमचंद

शहीद-ए-आज़म (कहानी) : मुंशी प्रेमचंद , Shaheed-e-Azam (Hindi Story) : Munshi Premchand कर्बला की दुर्घटना विश्व इतिहास की उन सर्वश्रेष्ठ घटनाओं में है जिन्होंने सभ्यता की दिशा परिवर्तित कर दी है। यजीद के खानदान में इस्लामी खिलाफत1 का जाना वास्तव में इस्लाम के विश्व-बंधुत्व और समानता के दीप का बुझ जाना था। यदि हजरत हुसैन …

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जॉन आफ आर्क : मुंशी प्रेमचंद

जॉन आफ आर्क : मुंशी प्रेमचंद Joan of Arc : Munshi Premchand जिन लोगों ने महिला वर्ग को व्यर्थ और निकम्मा समझ रखा है वास्तव में वे भारी गलती पर हैं। कोई युग ऐसा नहीं है जिसमें उन्होंने जनता के मन में अपनी प्रतिष्ठा और बड़ाई का सिक्का न जमाया हो। इतिहास साक्षी है कि …

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राष्ट्रवाद : मुंशी प्रेमचंद

Rashtravad Munshi Premchand राष्ट्रवाद : मुंशी प्रेमचंद यह तो हम पहले भी जानते थे और अब भी जानते हैं कि साधारण भारतवासी राष्ट्रीयता का अर्थ नहीं समझता, और यह भावना जिस जागृति और मानसिक उदारता से उत्पन्न होती है, वह अभी हममें बहुत थोड़े आदमियों में आई है। लेकिन इतना जरूर समझते थे कि जो …

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प्राक्कथन : नन्ददुलारे वाजपेयी

प्राक्कथन : नन्ददुलारे वाजपेयी Prakkathan : Nanddulare Vajpeyi प्रसादजी हिन्दी के युगप्रवर्त्तक कवि और साहित्यस्रष्टा तो थे ही, एक असाधारण समीक्षक और दार्शनिक भी थे। बुद्ध, मौर्य और गुप्त काल के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक अन्वेषणों पर प्रसादजी के निबंध पाठक पढ़ चुके हैं। उनका महत्त्व इस दृष्टि से बहुत अधिक है कि वे इतिहास की …

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काव्य और कला – जयशंकर प्रसाद (निबन्ध)

काव्य और कला – जयशंकर प्रसाद (निबन्ध) Kavya Aur Kala (Nibandh) : Jaishankar Prasad हिन्दी में साहित्य की आलोचना का दृष्टिकोण बदला हुआ सा दिखलाई पड़ता है। प्राचीन भारतीय साहित्य के आलोचकों की विचार-धारा जिस क्षेत्र में काम कर रही थी, वह वर्तमान आलोचनाओं के क्षेत्र से कुछ भिन्न था। इस युग की ज्ञानसम्बंधिनी अनुभूति …

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रहस्यवाद -जयशंकर प्रहस्यवादाद (निबन्ध)

रहस्यवाद -जयशंकर प्रहस्यवादाद (निबन्ध) Rahasyavad (Nibandh) : Jaishankar Prasad काव्य में आत्मा की संकल्पात्मक मूल अनुभूति की मुख्य धारा रहस्यवाद है। रहस्यवाद के सम्बन्ध में कहा जाता है कि उस का मूल उद्‌गम सेमेटिक धर्म-भावना है, और इसीलिए भारत के लिए वह बाहर की वस्तु है। किन्तु शाम देश के यहूदी, जिन के पैगम्बर मूसा …

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नाटकों में रस का प्रयोग -जयशंकर प्रसाद (निबन्ध)

नाटकों में रस का प्रयोग -जयशंकर प्रसाद (निबन्ध) , Natakon Mein Ras Ka Prayog (Nibandh) : Jaishankar Prasad पश्चिम ने कला को अनुकरण ही माना है; उस में सत्य नहीं। उन लोगों का कहना है कि “मनुष्य अनुकरणशील प्राणी है, इसलिए अनुकरणमूलक कला में उस को सुख मिलता है।” किन्तु भारत में रस सिद्धान्त के …

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रस – जयशंकर प्रसाद (निबन्ध)

रस – जयशंकर प्रसाद (निबन्ध) Ras (Nibandh) : Jaishankar Prasad जब काव्यमय श्रुतियों का काल समाप्त हो गया और धर्म ने अपना स्वरूप अर्थात् शास्त्र और स्मृति बनाने का उपक्रम किया―जो केवल तर्क पर प्रतिष्ठित था―तब मनु को भी कहना पड़ा:― यस्तर्केणानुसन्धत्तेसधर्मंवेदनेतरः। परन्तु आत्मा की संकल्पात्मक अनुभूति, जो मानव-ज्ञान की अकृत्रिम धारा थी, प्रवाहित रही। …

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